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गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011
"छाया हुआ अन्धेरा है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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शास्त्री जी ,क्या कहने इस कुहासे में लिपटी हुई
जवाब देंहटाएंआपकी कविता सूरज की तरह रौशनी फेला रही हे --धन्यवाद इस खूब सुरत कविता के लिए |
ANDHERA HATANE KA PRAYAS , YAA INTAJAR KARANA PADEGA....ACHCHHI SABERA.
जवाब देंहटाएंदुर्घटनाएँ घटाटोप हैं
जवाब देंहटाएंसंकट के बादल छाए,
काला-काला सा बसन्त है,
गीत-छन्द हैं बौराए,
कैसे हम मधुमास मनाएँ,
विपदाओं ने घेरा है।
नजर न आती सूर्य रश्मियाँ,
छाया हुआ अन्धेरा है।।
सही कह रहे हैं…………मगर अन्धकार के बाद ही सवेरा होता है………यही उम्मीद करते हैं…………सुन्दर प्रस्तुति।
शास्त्री जी अच्छा गीत बन पड़ा है, बधाई।
जवाब देंहटाएंआपकी आज की इस कविता में निराशावाद कैसे ?
जवाब देंहटाएंनजर न आती सूर्य रश्मियाँ,
जवाब देंहटाएंछाया हुआ अन्धेरा है।।
वाह बेहतरीन पंक्तियाँ ...
आज कल हमारे भारत को भी कुछ इसी प्रकार के अंधेरों का सामना करना पड़ रहा है... उम्मीद है की जल्दी ही सवेरा होगा
पण्डित जी! वसंतोत्सव के स्वर से आपने हठात यू टर्न कैसे ले लिया!!! सीधा माघ से पूस!!
जवाब देंहटाएंsundar prakriti geet..
जवाब देंहटाएंदेश का यही हाल है..
जवाब देंहटाएंनवप्रभात में भुवनभास्कर,
जवाब देंहटाएंने नजरों को फेरा है।
नजर न आती सूर्य रश्मियाँ,
छाया हुआ अन्धेरा है।
बहुत सुंदर पंक्तियां....पर अंधकार के बाद ही सवेरा होता है....अंधकार जरूर दूर होगा
कल हमारे यहां भी बहुत गहरा कोहरा था जी, सुंदर कविता के लिये धन्यवाद
जवाब देंहटाएंmeethi meethi thand mein meetha meetha geet...waah!
जवाब देंहटाएंYadi vastav me dharti per jivan jaag jaye,to savere ko bhi jagana hoga aur andhere ko bhi bhagna hoga.
जवाब देंहटाएंIntjar hai dharti per jivan jagne ka.
Aapki is sunder prastuti ke liye
bahut bahut aabhar.
दिन के बाद रात और रात के बाद दिन. यही जीवन चक्र है. बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
bahut khoobsurat kavita.shabd aapki kalam se samayanusar nikalte hain.bahut khoob prernadayak.
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