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बुधवार, 9 फ़रवरी 2011
"होलीगीत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
कल-कल बहती है, नदिया की धारा. सजनी को साजन लगता है प्यारा,
...........बहुत सुन्दर होलीगीत
वसन्त की आप को हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंकई दिनों से बाहर होने की वजह से ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
शब्द , स्वर व संचार की जुगलबंदी !
जवाब देंहटाएंबढ़िया !
शब्दों और स्वर का सुन्दर समन्वय... होली की शुरुआत वसंत पंचमी से हो जाती है..
जवाब देंहटाएंabhi keval kavita ko padha hai. bahut sundar rachna .
जवाब देंहटाएंजितना सुन्दर गीत उतना ही मस्ती भरा उच्चारण, ब्लॉग नाम आज सिद्ध कर दिया आपने।
जवाब देंहटाएंशब्द और आवाज़ दोनों प्रभावित करते हैं.... आदरणीय शास्त्रीजी बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह ये तो कमाल हो गया अब तो गाने मे भी इतना सुन्दर स्वर्…………माँ सरस्वती की आप पर ऐसे ही कृपा बनी रहे………………बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंकल ही सुन लिया था यह गीत और आपके बार बार कहने पर कि आप गाना नहीं जानते ...हम यह मानने को तैयार नहीं :)
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति.
बहुत मनमोहक और प्रवाहपूर्ण सुन्दर होली गीत
जवाब देंहटाएंमेरा तो अभी से होली खेलने का मन हो गया है। होली है।
जवाब देंहटाएं---------
ब्लॉगवाणी: एक नई शुरूआत।
khoobsurat geet...sun ke mazaa aa gaya...aayee basant bahaar chalo holi khelenge!
जवाब देंहटाएंसुंदर..!! हार्दिक शुभकामनाएँ..!!
जवाब देंहटाएंWah wah kya baat hai
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