उड़ता था उन्मुक्त कभी जो नीले-नीले अम्बर में। कैद हो गया आज सिकन्दर सोने के सुन्दर घर में।। अपनी बोली भूल गया है, मिट्ठू-मिट्ठू कहता है, पिंजड़े में घुट-घुटकर जीता, दारुण पीड़ा सहता है, कृत्रिम झूला रास न आता, तोते को बन्दीघर में कैद हो गया आज सिकन्दर सोने के सुन्दर घर में।। चंचल-चपल तोतियों के, हो गये आज दर्शन दुर्लभ, रास-रंग के स्वप्न सलोने, अब जीवन में नहीं सुलभ, बहता पानी सिमट गया है, घर की छोटी गागर में। कैद हो गया आज सिकन्दर सोने के सुन्दर घर में।। स्वादभरे अपनी मर्जी के, आम नहीं खा पाएगा, फुर्र-फुर्र उड़कर नभ में, अब करतब नहीं दिखाएगा, तैराकी को भूल गया है, नाविक फँसा समन्दर में। कैद हो गया आज सिकन्दर सोने के सुन्दर घर में।। छूट गये हैं संगी-साथी, टूट गये है तार सभी, बन्दी की किस्मत में होता, नहीं मुक्त संसार कभी, उम्रकैद की सजा मिली है, नारकीय भवसागर में। कैद हो गया आज सिकन्दर सोने के सुन्दर घर में।। इन्सानों की बस्ती में भी, मिला नहीं इन्सान कोई, दिलवालों की दुनिया में भी, रहा नहीं रहमान कोई, दानवता छिपकर बैठी है, मानवता की चादर में। कैद हो गया आज सिकन्दर सोने के सुन्दर घर में।। प्रजातन्त्र की हथकड़ियों में, आजादी दम तोड़ रही, सत्ता की आँगनबाड़ी, जनता का रक्त निचोड़ रही, परिधानों को छोड़, खोजता सच्चा सुख आडम्बर में। कैद हो गया आज सिकन्दर सोने के सुन्दर घर में।। |
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शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011
"कैद हो गया आज सिकन्दर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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वाह ! शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंइतना जीवंत शब्द-चित्र !
पढ़ते हुए लगा जैसे पिंजरे में कैद पंक्षी स्वयं अपना दुःख प्रकट कर रहा है !
आभार !
बहुत ही सशकत. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बेहतरीन बिम्ब के माध्यम से व्यंग का पुट लिए हुए एक सशक्त रचना .
जवाब देंहटाएंबहुत जीवंत और सटीक.आभार इस रचना के लिए.
छूट गये हैं संगी-साथी,
जवाब देंहटाएंटूट गये है तार सभी,
बन्दी की किस्मत में होता,
नहीं मुक्त संसार कभी,
उम्रकैद की सजा मिली है, नारकीय भवसागर में।
कैद हो गया आज सिकन्दर सोने के सुन्दर घर में।।
यही व्यथा तो आज के इंसान की भी है……………पंछी के प्रतीक के माध्यम से आज की रचना बेहद प्रशंसनीय बन गयी है……………मानव त्रासदी का सजीव चित्रण कर दिया ………शानदार , लाजवाब रचना बहुत पसन्द आई…………आभार्।
बहुत ही सामयिक और सच्ची रचना!
जवाब देंहटाएंवाह जी हमेशा की तरह से बहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंएक पक्षी की वेदना का सजीव वर्णन!!
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा। इस पर कुछ कहना हमारे लिए खता होगी।
जवाब देंहटाएंबेहद मंझी हुई रचना..
जवाब देंहटाएंआपकी यह रचना पढ़ कर शिव मंगल सिंह सुमन की एक कविता याद आई ...
जवाब देंहटाएंहम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाएंगे ...
बहुत अच्छी कविता .
इन्सानों की बस्ती में भी,
जवाब देंहटाएंमिला नहीं इन्सान कोई,
दिलवालों की दुनिया में भी,
रहा नहीं रहमान कोई,
दानवता छिपकर बैठी है, मानवता की चादर में।
कैद हो गया आज सिकन्दर सोने के सुन्दर घर में।।
wah.bahot shandar.
सरल संदेश में गहरा दर्शन छिपा है।
जवाब देंहटाएंप्रजातन्त्र की हथकड़ियों में,
जवाब देंहटाएंआजादी दम तोड़ रही,
सत्ता की आँगनबाड़ी,
जनता का रक्त निचोड़ रही,....
सच्चाई से परिपुर्ण सुन्दर और भावपूर्ण कविता के लिए बधाई।
बहुत सुन्दर कविता.
जवाब देंहटाएं