मौन निमन्त्रण देतीं कलियाँ, सुमन लगे मुस्काने। वासन्ती परिधान पहन कर, उपवन लगे रिझाने।। पाकर मादक गन्ध शहद लेने मधुमक्खी आई, सुन्दर पंखोंवाली तितली को सुगन्ध है भाई, चंचल-चंचल चंचरीक, आये गुंजार सुनाने। वासन्ती परिधान पहन कर, उपवन लगे रिझाने।। सबका तन गदराया, महक रहे हैं खेत बसन्ती, आम-नीम बौराया, कोयल, कागा और कबूतर लगे रागनी गाने। |
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शनिवार, 12 फ़रवरी 2011
"उपवन लगे रिझाने" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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वासन्ती परिधान पहन कर,
जवाब देंहटाएंउपवन लगे रिझाने।।
vasant per bahut pyari kavita hai.
बहुत सुन्दर चित्रण किया है...
जवाब देंहटाएंवासन्ती परिधान पहन कर,
जवाब देंहटाएंउपवन लगे रिझाने।।
बहुत सुन्दर चित्रण ..
वाह एक और सुंदर वसंत गीत.
जवाब देंहटाएंवाह एक और सुंदर वसंत गीत.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत ।जिसे मै पढते पढते गुनगुनाने लगी
जवाब देंहटाएंbahut hee vadiyaa guru ji!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर गीत .....
जवाब देंहटाएंमैं भी तैयार हूं मगर मौसम टेंशन किए हुए है।
जवाब देंहटाएंकविता और तस्वीरें दोनों मस्त।
जवाब देंहटाएंसुंदर चित्र के संग सुंदर बसंती रचना के लिये आप का धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी कविता हैं.
जवाब देंहटाएंमन में बजते गाने,
जवाब देंहटाएंउपवन लगे रिझाने।
बहुत सुन्दर गीत!
जवाब देंहटाएंसचमुच लगे रिझाने!
जवाब देंहटाएं