जागो अब हो गया सवेरा, दूर हो गया तम का घेरा, शिक्षा की हम अलख जगाएँ। मन मन्दिर में दीप जलाएँ।। कुक्कुट कुकड़ूँकू चिल्लाया, चिड़ियों ने भी गीत सुनाया, आओ हम भी खिलकर गायें। मन मन्दिर में दीप जलाएँ।। घर-आँगन को आज बुहारें, कभी न हिम्मत अपनी हारें, जीने का ढंग हम सिखलाएँ। मन मन्दिर में दीप जलाएँ।। खिड़की दरवाजों को खोलें, वेदों के मन्त्रों को बोलें, पूजा के हम थाल सजाएँ। मन मन्दिर में दीप जलाएँ।। माता की आरती उतारें, स्वर भरकर अर्चना उचारें, ज्ञान-रश्मियों को फैलाएँ। मन मन्दिर में दीप जलाएँ।। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
सोमवार, 7 फ़रवरी 2011
"दीप जलाएँ" (डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक")
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
माता की आरती उतारें,
जवाब देंहटाएंस्वर भरकर अर्चना उचारें,
ज्ञान-रश्मियों को फैलाएँ।
मन मन्दिर में दीप जलाएँ।।
श्रेष्ठ संदेश से युक्त उत्तम बालगीत पढ़कर अच्छा लगा।
aao sab mil ke guru ji ke saath deep jalaayein aur andhkaar ko door bhagaayein!
जवाब देंहटाएंसार्थक सन्देश लिए रचना .....आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंमाता की आरती उतारें,
जवाब देंहटाएंस्वर भरकर अर्चना उचारें,
ज्ञान-रश्मियों को फैलाएँ।
मन मन्दिर में दीप जलाएँ॥
ज्ञान दीप हमेशा जलते रहना चाहिये………॥बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
आदरणीय शास्त्री जी ,
जवाब देंहटाएंअभिवादन
बहुत सुन्दर गीत ,,,हर बंद प्रेरक और जीवनोपयोगी |
बहुत-बहुत आभार
बहुत सुन्दर गीत.
जवाब देंहटाएंशिक्षादीप - सबके लिये, पुण्य यह सब करें।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर गीट, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसादर नमन..!!
जवाब देंहटाएंघर-आँगन को आज बुहारें,
जवाब देंहटाएंकभी न हिम्मत अपनी हारें,
जीने का ढंग हम सिखलाएँ।
मन मन्दिर में दीप जलाएँ।।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
शिक्षा की हम अलख जगाएँ।
जवाब देंहटाएंमन मन्दिर में दीप जलाएँ।।
उत्तम संदेश, सभी के लिये.
अशिक्षा के अंधकार में दीप जलाती सरस्वती का दीप पर्व!! पंडित जी बहुत सुंदर!!
जवाब देंहटाएंदीप से दीप जले!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत.
जवाब देंहटाएं