जागो अब हो गया सवेरा, दूर हो गया तम का घेरा, शिक्षा की हम अलख जगाएँ। मन मन्दिर में दीप जलाएँ।। कुक्कुट कुकड़ूँकू चिल्लाया, चिड़ियों ने भी गीत सुनाया, आओ हम भी खिलकर गायें। मन मन्दिर में दीप जलाएँ।। घर-आँगन को आज बुहारें, कभी न हिम्मत अपनी हारें, जीने का ढंग हम सिखलाएँ। मन मन्दिर में दीप जलाएँ।। खिड़की दरवाजों को खोलें, वेदों के मन्त्रों को बोलें, पूजा के हम थाल सजाएँ। मन मन्दिर में दीप जलाएँ।। माता की आरती उतारें, स्वर भरकर अर्चना उचारें, ज्ञान-रश्मियों को फैलाएँ। मन मन्दिर में दीप जलाएँ।। |
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सोमवार, 7 फ़रवरी 2011
"दीप जलाएँ" (डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक")
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माता की आरती उतारें,
जवाब देंहटाएंस्वर भरकर अर्चना उचारें,
ज्ञान-रश्मियों को फैलाएँ।
मन मन्दिर में दीप जलाएँ।।
श्रेष्ठ संदेश से युक्त उत्तम बालगीत पढ़कर अच्छा लगा।
aao sab mil ke guru ji ke saath deep jalaayein aur andhkaar ko door bhagaayein!
जवाब देंहटाएंसार्थक सन्देश लिए रचना .....आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंमाता की आरती उतारें,
जवाब देंहटाएंस्वर भरकर अर्चना उचारें,
ज्ञान-रश्मियों को फैलाएँ।
मन मन्दिर में दीप जलाएँ॥
ज्ञान दीप हमेशा जलते रहना चाहिये………॥बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
आदरणीय शास्त्री जी ,
जवाब देंहटाएंअभिवादन
बहुत सुन्दर गीत ,,,हर बंद प्रेरक और जीवनोपयोगी |
बहुत-बहुत आभार
बहुत सुन्दर गीत.
जवाब देंहटाएंशिक्षादीप - सबके लिये, पुण्य यह सब करें।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर गीट, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसादर नमन..!!
जवाब देंहटाएंघर-आँगन को आज बुहारें,
जवाब देंहटाएंकभी न हिम्मत अपनी हारें,
जीने का ढंग हम सिखलाएँ।
मन मन्दिर में दीप जलाएँ।।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
शिक्षा की हम अलख जगाएँ।
जवाब देंहटाएंमन मन्दिर में दीप जलाएँ।।
उत्तम संदेश, सभी के लिये.
अशिक्षा के अंधकार में दीप जलाती सरस्वती का दीप पर्व!! पंडित जी बहुत सुंदर!!
जवाब देंहटाएंदीप से दीप जले!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत.
जवाब देंहटाएं