ग़ज़ल -0-0-0- मैं कायरों में सिकन्दर तलाश करता हूँ मिला नही कोई गम्भीर-धीर सा आक़ा मैं सियासत में समन्दर तलाश करता हूँ लगा लिए है मुखौटे शरीफजादों के विदूषकों में कलन्दर तलाश करता हूँ सजे हुए हैं महल मख़मली गलीचों से रईसजादों में रहबर तलाश करता हूँ मिला नहीं है मुझे आजतक कोई चकमक अन्धेरी रात में पत्थर तलाश करता हूँ पहन लिए है सभी ने लक़ब (उपनाम) के दस्ताने मैं इनमें सूर-सुखनवर तलाश करता हूँ |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
सोमवार, 21 फ़रवरी 2011
"सुखनवर तलाश करता हूँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
बहुत लाजवाब गजल
जवाब देंहटाएंरामराम.
चराग़ लेके मुकद्दर तलाश करता हूँ
जवाब देंहटाएंमैं कायरों में सिकन्दर तलाश करता हूँ
मयंक जी आपकी तलाश गलत दिशा में है | अर्थपूर्ण गज़ल ,बधाई
बहुत खूबसूरत गज़ल ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा रचना , बधाई स्वीकार करें .
जवाब देंहटाएंआइये हमारे साथ उत्तरप्रदेश ब्लॉगर्स असोसिएसन पर और अपनी आवाज़ को बुलंद करें . फालोवर बनकर उत्साह वर्धन कीजिये
लगा लिए है मुखौटे शरीफजादों के
जवाब देंहटाएंविदूषकों में कलन्दर तलाश करता हूँ
Waah,
बहुत खुबसुरत रचना.......
जवाब देंहटाएंबहूत उम्दा रचना हर शेर लाजवाब
जवाब देंहटाएंमिला नहीं है मुझे आजतक कोई चकमक
जवाब देंहटाएंअन्धेरी रात में पत्थर तलाश करता हूँ ।
वाकई अर्थपूर्ण तलाश...
मिला नहीं है मुझे आजतक कोई चकमक
जवाब देंहटाएंअन्धेरी रात में पत्थर तलाश करता हूँ
वाह! बहुत उम्दा गज़ल..हरेक शेर लाज़वाब..आभार
मिला नहीं है मुझे आजतक कोई चकमक
जवाब देंहटाएंअन्धेरी रात में पत्थर तलाश करता हूँ
वाह वाह ,एक न एक दिन तो मिल ही जायेगा.बढ़िया ग़ज़ल.
चराग़ लेके मुकद्दर तलाश करता हूँ
जवाब देंहटाएंमैं कायरों में सिकन्दर तलाश करता हूँ
वाह शास्त्री जी बहुत सुंदर रचना धन्यवाद
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 22- 02- 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
BAHUT HI ACCHI GAZAL
जवाब देंहटाएंSIR JI TALASH JARUR PORI HOGI
HUMARI DUAYE BHI AAPKE SATH HE
शास्त्री जी, शायद आपकी पहली ग़ज़ल पढ रहा हूं। कमाल का लिखते हैं
जवाब देंहटाएंमिला नहीं है मुझे आजतक कोई चकमक
अन्धेरी रात में पत्थर तलाश करता हूँ
वाह !! क्या बात है!!
क्या बात है भाई .... वाह !!
जवाब देंहटाएंअन्तिम शे’र तो लाजवाब था...
जवाब देंहटाएंलाजवाब। इससे ज्यादा क्या कहूं। दिल खश कर दिया आपने।
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंसब से उत्तम है ये आज के लिए!
जवाब देंहटाएंवाह शास्त्री जी वाह! जिस भी विधा मे लिखते है कमाल करते हैं…………क्या खूब गज़ल लिखी है हम तो कायल हो गये आपकी लेखनी के……………मनमोहक गज़ल्।
जवाब देंहटाएंबहुत ही मनमोहक गजल लिखा है आपने।
जवाब देंहटाएंbahut hi behtareen shabd saiyojan...............SARTHAK Kavita
जवाब देंहटाएं"मिला नहीं मुझे आज तक कोई चकमक अंधेरी रात में पत्थर तलाश करता हूँ "
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी यह पंक्तियाँ |
आशा
behad sundar gazal... har sher Lazwaab... juoo aapke paas ho chakmak pathhar ..:)
जवाब देंहटाएंचराग़ लेके मुकद्दर तलाश करता हूँ
जवाब देंहटाएंमैं कायरों में सिकन्दर तलाश करता हूँ
bahut achchi linen likhi hai.