तीन रंग का झण्डा न्यारा। हमको है प्राणों से प्यारा।। त्याग और बलिदानों का वर। रंग केसरिया सबसे ऊपर।। इसके बाद श्वेत रंग आता। हमें शान्ति का ढंग सुहाता।। सबसे नीचे रंग हरा है। हरी-भरी यह वसुन्धरा है।। बीचों-बीच चक्र है सुन्दर। हों विकास भारत के अन्दर।। चित्रांकन प्रांजल -0-0-0- प्यारे बच्चों! आपके पढ़ने के लिए दे रहा हूँ, कुछ बाल पत्रिकाओं की जानकारी! साफ-साफ पढ़ने के लिए |
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मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011
"हों विकास भारत के अन्दर" (डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक")
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बहुत ही सुंदर कविता........धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता जी, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर... बढ़िया...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर कविता..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता ...
जवाब देंहटाएंबच्चों के लिए अच्छे साहित्य की कमी के दौर में आप उनके लिए अच्छी सौगातें पेश कर रहे हैं...
आभार !
बहुत बहुत सुन्दर कविता.....
जवाब देंहटाएंbahut hee uttam hai!
जवाब देंहटाएंकविता भी बहुत सुन्दर और बच्चों के लिये जानकारी भी। बधाई।
जवाब देंहटाएंaapki रचना सराहनीय है .बधाई .
जवाब देंहटाएंpranjal ko sundar chitrankan ke liye hardik shubhkamnaye .
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट लेखन के लिए बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - पधारें - ठन-ठन गोपाल - क्या हमारे सांसद इतने गरीब हैं - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा
बहुत सुन्दर कविता।
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