एक ग़ज़ल-पुरानी डायरी से सियाह रात है, छाया घना अन्धेरा है अभी तो दूर तलक भी नहीं सवेरा है अभी तो तुमसे बहुत दिल के राज़ कहने हैं अभी फलक़ पे लगा बादलों का डेरा है छटेंगी काली घटाएँ तो बोल निकलेंगे गमों के बोझ का साया बहुत घनेरा है हमारे घोंसलों में जिन्दगी सिसकती है कुछ दरिन्दों ने अपने वतन को घेरा है अभी न जाओ खतरनाक सूनी राहों पे कदम-कदम पे खड़ा अज़नबी लुटेरा है |
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मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011
"एक ग़ज़ल-पुरानी डायरी से" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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हमारे घोंसलों में जिन्दगी सिसकती है
जवाब देंहटाएंकुछ दरिन्दों ने हमारे वतन को घेरा है
अभी न जाओ खतरनाक सूनी राहों पे
कदम-कदम पे खड़ा अज़नबी लुटेरा है
आपकी पुरानी हो या नयी ………बेहतरीन होती है……………………शानदार गज़ल्।
फिर एक बार इस खुबसूरत सी मासूम ग़ज़ल के लिए बधाईयाँ !
जवाब देंहटाएंखूबसूरत गजल...बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा रचना , बधाई स्वीकार करें .
जवाब देंहटाएंआइये हमारे साथ उत्तरप्रदेश ब्लॉगर्स असोसिएसन पर और अपनी आवाज़ को बुलंद करें .कृपया फालोवर बन उत्साह वर्धन कीजिये
namaskar ji
जवाब देंहटाएंbahut hi sunder gazal
old is gold
खूबसूरत गजल...बधाई.
जवाब देंहटाएंहमारे घोंसलों में जिन्दगी सिसकती है
जवाब देंहटाएंकुछ दरिन्दों ने हमारे वतन को घेरा है
शानदार गज़ल्...
वाह जी बहुत सुंदर गजल, ध्न्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .... बेहतरीन ग़ज़ल है !
जवाब देंहटाएंहमारे घोंसलों में जिन्दगी सिसकती है
जवाब देंहटाएंकुछ दरिन्दों ने अपने वतन को घेरा है
वाह! बहुत ख़ूबसूरत गज़ल...
सर आप तो पारस है पत्थर भी छुएगें तो सोना हो जाएगा। हमें गर्व है कि आप जैसे लोगों की रचना पढ़ने का सौभाग्य मिलता है। क्या फर्क पड़ता है कि रचना नई हो या पुरानी। बेहतरीन गजल। आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत गजल| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
पंडित जी!
जवाब देंहटाएंजवाब नहीं आपका!!
एक और उम्दा ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंआपका जवाब नहीं शास्त्री जी।
बहुत ही बढ़िया रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा गज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत रचना |
जवाब देंहटाएंहमारे घोंसलों में जिन्दगी सिसकती है
जवाब देंहटाएंकुछ दरिन्दों ने अपने वतन को घेरा है
बहुत अच्छी कविता। बधाई।
अभी तो तुमसे बहुत दिल के राज़ कहने हैं
जवाब देंहटाएंअभी फलक़ पे लगा बादलों का डेरा है
khoobsurati ki paraakashthaa ko chhotee gazal.
बहुत ही प्यारी गजल है। कभी कभी ऐसे ही पुरानी डायरी के पन्ने पलटते रहा करिए।
जवाब देंहटाएं---------
ब्लॉगवाणी: ब्लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।
अभी तो तुमसे बहुत दिल के राज़ कहने हैं
जवाब देंहटाएंअभी फलक़ पे लगा बादलों का डेरा है
vaah
बहुत ही सुंदर और सटीक गजल
जवाब देंहटाएंछटेंगी काली घटाएँ तो बोल निकलेंगे
जवाब देंहटाएंगमों के बोझ का साया बहुत घनेरा है
purani bhi bahut achchi nikli.