तेज घटा जब सूर्य का, हुई लुप्त सब धूप। वृद्धावस्था में कहाँ, यौवन जैसा रूप।। बिना धूप के किसी का, निखरा नहीं स्वरूप। जड़, जंगल और जीव को, जीवन देती धूप।। सुर, नर, मुनि के ज्ञान की, जब ढल जाती धूप। छत्र-सिंहासन के बिना, रंक कहाते भूप।। बिना धूप के खेत में, फसल नहीं उग पाय। शीत, ग्रीष्म, वर्षाऋतु, भुवनभास्कर लाय।। शैल शिखर उत्तुंग पर, जब पड़ती है धूप। हिमजल ले सरिता बहें, धर गंगा का रूप।। नष्ट करे दुर्गन्ध को, शीलन देय हटाय। पूर्व दिशा के द्वार पर, रोग कभी ना आय।। खग-मृग, कोयल-काग को, सुख देती है धूप। उपवन और बसन्त का, यह सवाँरती रूप।। |
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बुधवार, 23 फ़रवरी 2011
"धूप के दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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तेज घटा जब सूर्य का, हुई लुप्त सब धूप।
जवाब देंहटाएंवृद्धावस्था में कहाँ, यौवन जैसा रूप।।
बिना धूप के किसी का, निखरा नहीं स्वरूप।
जड़, जंगल और जीव को, जीवन देती धूप।।
बहुत ही शानदार दोहे रचे हैं ………संदेश भी दे रहे हैं , आगाह भी कर रहे हैं और धूप का महत्त्व भी बता रहे हैं।
"खग-मृग, कोयल-काग को, सुख देती है धूप।
जवाब देंहटाएंउपवन और बसन्त का, यह सवाँरती रूप।"
क्या बात है..शास्त्री जी आपके दोहे लाजवाब है।बहुत ही सुंदर।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (24-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
शैल शिखर उत्तुंग पर, जब पड़ती है धूप।
जवाब देंहटाएंहिमजल ले सरिता बहें, धर गंगा का रूप।।
बहुत शानदार दोहे हैं !
बिना धूप के किसी का, निखरा नहीं स्वरूप।
जवाब देंहटाएंजड़, जंगल और जीव को, जीवन देती धूप।।
सन्देश देती हुई रचना....
Dhoop ke bina jag me jivan sambhav
जवाब देंहटाएंhi nahi lagta."poorv disha ke dwar
per,rog kabhi naa aaye" Shastri ji
jara is par aur prakash daalen to
kirpa hogi.
बहुत सुन्दर दोहे..आभार
जवाब देंहटाएंधुप तो इस धरा के जिन्दगी का रूप है। सुंदर रचना। आभार।
जवाब देंहटाएंधुप तो इस धरा के जिन्दगी का रूप है। सुंदर रचना। आभार।
जवाब देंहटाएंनष्ट करे दुर्गन्ध को, शीलन देय हटाय।
जवाब देंहटाएंपूर्व दिशा के द्वार पर, रोग कभी ना आय।।
बहुत अच्छे दोहे शास्त्री जी।
यह तो स्लोगन के समान सब जगह बांट देना चाहिए।
सुन्दर रूप सँवारा सबका।
जवाब देंहटाएंअच्छे दोहे। धूप यानि सूरज के महत्व को साबित करती रचना। बधाई हो आपको।
जवाब देंहटाएंbahut sundar hai.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर! ठण्ड से ठिठुरते दोहे याद आ गए!
जवाब देंहटाएंmeethee dhoop hamesha achhi lagti hai!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर..!
जवाब देंहटाएंबिना धूप के किसी का, निखरा नहीं स्वरूप।
जवाब देंहटाएंजड़, जंगल और जीव को, जीवन देती धूप।।
खूबसूरत भाव रचना मेँ ।
बहुत सुन्दर और पवित्र ....धूप के दोहे
जवाब देंहटाएंखग-मृग, कोयल-काग को, सुख देती है धूप।उपवन और बसन्त का, यह सवाँरती रूप।।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लगे धूप के दोहे.
सारे दोहे बढ़िया हर लिहाज से.आप बहुत अच्छा लिखते हैं , शास्त्री जी.
जवाब देंहटाएंधूप के दोहों में ज़िंदगी की धूप खिल रही है ...बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंशैल शिखर उत्तुंग पर, जब पड़ती है धूप।
जवाब देंहटाएंहिमजल ले सरिता बहें, धर गंगा का रूप।।..
दोहे बहुत ही शानदार हैं ....
लाजवाब ...
..आभार.