जब गरमी की ऋतु आती है! लू तन-मन को झुलसाती है!! तब आता तरबूज सुहाना! ठण्डक देता इसको खाना!! यह बाजारों में बिकते हैं! फुटबॉलों जैसे दिखते हैं!! एक रोज मन में यह ठाना! देखें इनका ठौर-ठिकाना!! पहुँचे जब हम नदी किनारे! बेलों पर थे अजब नजारे!! कुछ छोटे कुछ बहुत बड़े थे! जहाँ-तहाँ तरबूज पड़े थे!! इनमें से था एक उठाया! बैठ खेत में इसको खाया!! इसका गूदा लाल-लाल था! |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
गुरुवार, 7 अप्रैल 2011
"ठण्डे रस का भरा माल था" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
sunder bal kvita
जवाब देंहटाएंएक दम से मन कर रहा है कि इसे खा लूं।
जवाब देंहटाएंबहुत सरस कविता।
आपने तो ललचा दिया तरबूजे को दिखाकर, किन्तु आपकी कविता की रसों ने भरपूर स्वाद दिया, आभार !
जवाब देंहटाएंसुबह तरबूज खरीदने ही बाजार गए लेकिन कई जगह रास्ते बन्द थे तो बिना खरीदे ही वापस आना पड़ा। अब आप इतने चटक लाल तरबूज दिखा रहे हैं और मन को ललचा रहे हैं!
जवाब देंहटाएंaha... tarjuba
जवाब देंहटाएंतरबूज आहा
जवाब देंहटाएंमूँह में पानी आ गया शास्त्री जी...
जवाब देंहटाएंआपकी कविता की मिठास ने तरबूज को और मीठा बना दिया.बहुत प्यारी बाल कविता.
जवाब देंहटाएंअब तो खाना ही पड़ेगा.
प्रिय शास्त्री चाचा जी
जवाब देंहटाएंसादर सस्नेहाभिवादन !
आना पड़ेगा आपके यहां अब …
बहुत अच्छी रचना है ।
नवरात्रि की शुभकामनाएं !
साथ ही…
*नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !*
नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!
चैत्र शुक्ल शुभ प्रतिपदा, लाए शुभ संदेश !
संवत् मंगलमय ! रहे नित नव सुख उन्मेष !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
muh mein water...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बालगीत..फोटो देख कर मन ललचा गया..आभार
जवाब देंहटाएंAapkaa khet shashtri Jee ?
जवाब देंहटाएंमुंह में पानी आ गया..
जवाब देंहटाएंमेरे पापा कहते थे कि खेत से तोड़ कर वहीँ उसे फोड कर तरबूज खाने का अपना ही मजा है...आज आपकी कविता ने वो मजा दिला दिया.
जवाब देंहटाएंआभार.
तरबूजे इतने अच्छे पहले कभी नहीं लगे । अब तो तरबूजे खरीदने जाना ही पडेगा ....
जवाब देंहटाएंवाह वाह, सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत सरस ....तरबूज के साथ कविता भी
जवाब देंहटाएंवाह शास्त्री जी आप ने हमें गाँव के खेतों में पाहुचा दिया
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर बाल कविता
इस बार का मौसम अभी तक तरबूज की लाली देखने को तरसा रहा है !
जवाब देंहटाएंबहुत सरस कविता।
जवाब देंहटाएंवाह वाह …………मुंह में पानी आ गया..
जवाब देंहटाएंto garmi ka pancham lahra diya aapne.bahut khoob.bahut saral bachchon ki tarah hi pyari si rachna.
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत ही खूबसूरत शब्दों के साथ बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता ..तरबूज तो रसभर आया .. पर आपकी तस्वीर भी अच्छी लगी... और कटा हुवा तरबूज तो बेहद सुन्दर फोटोग्राफी
जवाब देंहटाएं