नेह अगर होगा खुश होकर दीपक जलते जाएँगे। धरती पर फैला सारा अँधियारा हरते जाएँगे।। |
सुमन-सुमन से मिलकर, जब घर-आँगन में मुस्काएँगे, सूनी-वीरानी बगिया में, फिर से गुल खिल जाएँगे, फड़-फड़ करती तितली, भँवरे गुंजन करते आयेंगे। धरती पर फैला सारा अँधियारा हरते जाएँगे।। |
देवताओं का वन्दन होगा, धूप सुगन्धित सुलगेगी, जननी-जन्मभूमि का हम आराधन करते जाएँगे। |
महफिल में शम्मा होगी तो, सुर की धारा निकलेगी, विरह सुखद संयोग बनेगा, जमी पीर सब पिघलेगी. उर के सारे जख़्म पुराने, प्रतिपल भरते जाएँगे। धरती पर फैला सारा अँधियारा हरते जाएँगे।। |
दीप का यही धर्म है।
जवाब देंहटाएंdipak aese jlte rahe to desh ke gribon or jntaa ko mze aajaayenge ..akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंसुंदर काव्य मय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंbilkul yahi hoga ..aamin!
जवाब देंहटाएंbahut khoob !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर, प्रेरणादायक और अच्छा संदेश देती रचना..
जवाब देंहटाएंdeepak jalte jaayenge
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंकिस खूबसूरती से लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
इस छन्द-बद्ध रचना ने मन मोह लिया।
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएं