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मंगलवार, 30 अगस्त 2011
सोमवार, 29 अगस्त 2011
"वही हमारे मन को भाई" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
वही हमारे मन को भाई।। कैसे जुड़ा चाय से नाता, मैं इसका इतिहास बताता, शुरू-शुरू में इसकी प्याली, गोरों ने थी मुफ्त पिलाई। वही हमारे मन को भाई।। यह जीवन का अंग बनी अब, बहुत चाव से पीते हैं सब, बिना चाय के मेहमानों को, खातिर नहीं समझ में आई। वही हमारे मन को भाई।। बच्चों को नहीं दूध सुहाता, चाय देख मन खुश हो जाता, गर्म चाय की चुस्की लेकर, बीच-बीच में मठरी खाई। वही हमारे मन को भाई।। |
रविवार, 28 अगस्त 2011
"मिली आधी आजादी है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
अन्ना के सत्याग्रह से, हारी संसद की खादी है। साठ साल के बाद मिली, हमको आधी आजादी है।। निर्धन होता जाता निर्धन, धनवानों की चाँदी है, अंग्रेजी की बनी हुई है अपनी भाषा बाँदी है, झूठा पाता न्याय हमेशा, सच्चा ही फरियादी है। साठ साल के बाद मिली, हमको आधी आजादी है।। लूट-लूट भोली जनता को, अपनी भरी तिजोरी है, घूसखोर आकाओं ने, फैला दी रिश्वतखोरी है, लोकतन्त्र में राज कर रहा, धन-बल पर उन्मादी है। साठ साल के बाद मिली, हमको आधी आजादी है।। सत्ताधीशों ने पग-पग पर, कुटिल चाल अपनाई थी, किन्तु सत्य की हुंकारों से, हर-पल मुँहकी खाई थी, कड़वी औषधि देने से ही, मिटता ताप मियादी है। साठ साल के बाद मिली, हमको आधी आजादी है।। काली रात अभी गुज़री है, थोड़ा हुआ सवेरा है, कड़ी धूप में चलने को, पथ पड़ा अभी तो पूरा है, अन्ना के पीछे-पीछे, अब भारत की आबादी है। साठ साल के बाद मिली, हमको आधी आजादी है।। |
शनिवार, 27 अगस्त 2011
"उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
जिस उपवन में पढ़े-लिखे हों रोजी को लाचार। उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।। जिनके बंगलों के ऊपर, निर्लज्ज ध्वजा लहराती, रैन-दिवस चरणों को जिनके, निर्धन सुता दबाती, जिस आँगन में खुलकर होता सत्ता का व्यापार। उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।। मुस्टण्डों को दूध-मखाने, बालक भूखों मरते, जोशी, मुल्ला, पीर, नजूमी, दौलत से घर भरते, भोग रहे सुख आजादी का, बेईमान मक्कार। उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।। वयोवृद्ध सीधा-सच्चा, हो जहाँ भूख से मरता, सत्तामद में चूर वहाँ हो, शासक काजू चरता, ऐसे निष्ठुर मन्त्री को, क्यों झेल रही सरकार। उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।। |
शुक्रवार, 26 अगस्त 2011
"अलख जगाएँ जन-जन में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
वसुन्धरा को काले अंग्रेजों से, मुक्त कराने का।। बहुत समय के बाद आज फिर, गांधी ने अवतार लिया। भ्रष्टाचार मिटाने को, सत्याग्रह का व्रत धार लिया।। देख आमरण अनशन को, सरकार हो गई जब आहत। नकली आँसू बहा-बहाकर, देती है झूठी राहत।। डाँवाडोल हो रहा अब तो, मक्कारों का सिंहासन। गद्दारों का जल्दी ही, अब छिनने वाला है आसन।। भोली-भाली मीनों का अब होगा काम तमाम नहीं। घड़ियालों का मानसरोवर में, होगा विश्राम नहीं।। नाती-पोतों के शासन की परम्परा नहीं छायेगी। जनता पर जनता के शासन की अब बारी आयेगी।। गर्दन को जो नाप सके, अब लोकपाल वो आयेगा। घूसखोर कितना बलिष्ट हो इससे बच ना पायेगा।। जुग-जुग जिएँ हमारे अन्ना, अलख जगाएँ जन-जन में। रिश्वतखोरी के विकार अब, कभी न आयें तन-मन में।। |
"दोहे-गाँधी का अवतार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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तन पर खद्दर के वसन, सिर पर टोपी धार। अन्ना बनकर आ गये, गाँधी के अवतार।। |
जब बलशाली झूठ हो, बढ़ता अत्याचार। तब होता है देश में, गाँधी का अवतार।। |
सत्य-अहिंसा बन गया, सबल-प्रबल हथियार। अन्ना के आगे झुकी, अब निष्ठुर सरकार।। |
सत्याग्रह में निहित है, ताकत अतुल-अपार। इस बल के आगे हुआ, नतमस्तक संसार।।
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मन में अब होने लगा, आशा का संचार। जनता को मिल जाएँगे, अब उसके अधिकार।। |
गुरुवार, 25 अगस्त 2011
"प्रीत की डोरी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
बुधवार, 24 अगस्त 2011
"भ्रष्टाचार का आवरण" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मुद्रा का निरन्तर प्रकाशन,
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वादाखिलाफी है
नहीं है सम्बन्घ।
जाग उठे हैं खुद्दार,
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