बढ़ेंगे तुम्हारी तरफ धीरे-धीरे। जुबाँ से खुलेंगे, हरफ धीरे-धीरे।। नया है मुसाफिर, नयी जिन्दगी है, नया फलसफा है, नयी बन्दगी है, पढ़ेंगे-लिखेंगे, बरक धीरे-धीरे। जुबाँ से खुलेंगे, हरफ धीरे-धीरे।। उल्फत की राहों की सँकरी गली है, अभी सो रही गुलिस्ताँ की कली है, मिटेगा दिलों का फरक धीरे-धीरे। जुबाँ से खुलेंगे, हरफ धीरे-धीरे।। दुर्गम डगर में हैं चट्टान भारी, हटानी पड़ेंगी, परत आज सारी, परबत बनेंगे, सड़क धीरे-धीरे। जुबाँ से खुलेंगे, हरफ धीरे-धीरे।। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
शनिवार, 6 अगस्त 2011
"पढ़ेंगे-लिखेंगे, बरक धीरे-धीरे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
vah keya baath hai sastri ji
जवाब देंहटाएंkamal ka
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकार करें ||
ये तो जबरदस्त अंदाज है --
गेय--
मेरे जैसा असुर भी बड़े आराम
से गा सकता है ||
bahut pyari ghazal gungunaane ko ji chahta hai.
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरती से लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंExcellent creation ! Shastri ji , You fascinate me !
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुती....
जवाब देंहटाएंकिस-किस की तारीफ़ करूँ हर बन्द सुहाना लगता है।...वाह! शास्त्री जी! आप हर विधा के धुरन्धर हैं मल्टी टेलेण्टेड...वधाई और आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव समन्वय्।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति आभार |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत ही प्यारी कविता। बधाई।
जवाब देंहटाएं------
कम्प्यूटर से तेज़...!
सुज्ञ कहे सुविचार के....
bhaut sundar...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ....सटीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर कविता.
जवाब देंहटाएंधीरे सब कुछ होय।
जवाब देंहटाएंsab kahenge haraf dhire dhire......bahut sundar shastri ji
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत ही बढि़या .।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
उल्फत की राहों की सँकरी गली है,
जवाब देंहटाएंअभी सो रही गुलिस्ताँ की कली है,
मिटेगा दिलों का फरक धीरे-धीरे।
apki soch samajh ,durdarshita ko pranam ,nihsandeh , aap aur srijan
dono sarahaniya hain .... / shukriya sir.
उल्फत की राहों की सँकरी गली है,
जवाब देंहटाएंअभी सो रही गुलिस्ताँ की कली है,
मिटेगा दिलों का फरक धीरे-धीरे।
जुबाँ से खुलेंगे, हरफ धीरे-धीरे।।
bahut khoob
lazvab geet
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल! बढ़िया लगा!
जवाब देंहटाएंvery nice, Umda gajal prastuti
जवाब देंहटाएं