शराब पर रचना की माँग की थी! उनकी फरमाइश पर उन्हीं को समर्पित है यह रचना! मौत का पैगाम लाती है सुरा।। उदर में जब पड़ गई दो घूँट हाला, प्रेयसी लगनी लगी हर एक बाला, जानवर जैसा बनाती है सुरा। मौत का पैगाम लाती है सुरा।। ध्यान जनता का हटाने के लिए, नस्ल को पागल बनाने के लिए, आज शासन को चलाती है सुरा, मौत का पैगाम लाती है सुरा।। आज मयखाने सजे हर गाँव में, खोलती सरकार है हर ठाँव में, सभ्यता पर ज़ुल्म ढाती है सुरा। मौत का पैगाम लाती है सुरा।। इस भयानक खेल में वो मस्त हैं, इसलिए भोले नशेमन त्रस्त हैं, हर कदम पर अब सताती है सुरा। मौत के पैगाम को लाती सुरा।। सोमरस के दो कसैले घूँट पी, तोड़ कर अपनी नकेले ऊँट भी, नाच नंगा अब नचाती है सुरा। मौत के पैगाम को लाती सुरा।। डस रहे हैं देश काले नाग अब, कोकिला का “रूप" भऱकर काग अब, गान गाता आज नाती बेसुरा। मौत के पैगाम को लाती सुरा।। |
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शनिवार, 3 सितंबर 2011
"शासन को चलाती है सुरा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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डस रहे हैं देश काले नाग अब,
जवाब देंहटाएंकोकिला का “रूप" भऱकर काग अब,
गान गाता आज नाती बेसुरा।
मौत के पैगाम को लाती सुरा।।
vah ji vah
keya bat hai
likane ka andaj hai aap may bahut hi kub hai
सोमरस के दो कसैले घूँट पी,
जवाब देंहटाएंतोड़ कर अपनी नकेले ऊँट भी,
नाच नंगा अब नचाती है सुरा।
मौत के पैगाम को लाती सुरा।।
waah behtreen najm
अच्छी रचना सुरा पर...
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया रचना।
जवाब देंहटाएं♥
जवाब देंहटाएंआदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी
प्रणाम !
सादर वंदेमातरम् !
डस रहे हैं देश काले नाग अब,
कोकिला का “रूप" भऱकर काग अब,
गान गाता आज नाती बेसुरा।
आप हमेशा ही कमाल लिखते हैं … आज भी बेहतर है
आज शासन को चलाती है सुरा,
मौत का पैगाम लाती है सुरा।।
आज मयखाने सजे हर गांव में,
खोलती सरकार है हर ठांव में,
…और अब सरकार अपनी आय के श्रोत बढ़ाने के लिए वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता दे रही है …
जिसको जो काला कारनामा करना है , करो । बस , सरकार साहिब के हिस्से का जमा करवा कर परमिट ले लो … और जो चाहो करो ।
# अब भी इस सरकार को नहीं बदला तो फिर अवसर नहीं आएगा !!
आपको सपरिवार
बीते हुए हर पर्व-त्यौंहार सहित
आने वाले सभी उत्सवों-मंगलदिवसों के लिए
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
वाह! मान गये...बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएं‘हे मदिरालय के संस्थापक तुम्हें मुबारक मधुशाला’
नाच नंगा अब नचाती है सुरा।
जवाब देंहटाएंमौत के पैगाम को लाती सुरा।।
आप से से सहमत !
.बहुत सुन्दर..
आज मयखाने सजे हर गाँव में,
जवाब देंहटाएंखोलती सरकार है हर ठाँव में,
सभ्यता पर ज़ुल्म ढाती है सुरा।
मौत का पैगाम लाती है सुरा।
श्री मान जी आप ने सही कहा आज के नौजवानों को शराब बर्बाद ही तो कर रही है ..
sura aaj ho gayi halaa
जवाब देंहटाएंzindgi ko zeher deti ye sura.
bahud sunder prabhavi rachna.
शराब आदमी को आदमी नहीं रखती...
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत और सारगर्भित प्रस्तुति...आभार
जवाब देंहटाएंbahut sundar prastuti badhai
जवाब देंहटाएंश्रमजीवी महिलाओं को लेकर कानूनी जागरूकता
रहे सब्ज़ाजार,महरे आलमताब भारत वर्ष हमारा
नाच नंगा अब नचाती है सुरा।
जवाब देंहटाएंमौत के पैगाम को लाती सुरा।।
आपकी यह रचना लाजवाब है।
नशा बर्बादी की जड़ है।
मुसलमानों पर ऐतराज़ के चक्कर में नशे की हिमायत ?
शास्त्री जी नमस्कार..
जवाब देंहटाएंसही संदेश ..मौत का पैगाम ,लाती है सुरा..
'गज़ल' सुननें को शिरकत करें !
khoobsoorat
जवाब देंहटाएंआज शासन को चलाती है सुरा। अजी यह क्या लिख दिया? दिल्ली में पेशी पड़ जाएगी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंबोतलों का नाच-नंगा, न नजर आता कभी
हाथ धो बदनाम के पीछे पड़े शायर सभी
जाम में होता नशा तो नाचती बोतल दिखे
है सरासर झूठ नादाँ , न नशा दारू चखे
बोतले कुछ यूँ पड़ी थी, houson के सामने
देखने भर से नशे में, सर लगे सर थामने
शायरों की सोच को झटका लगा जो एक दिन
बोतलें खाली लिए वे, झूमते माशूक बिन
मन गई होली-दीवाली दूर बीयर-बार से
चूम कर के बोतलों को, दूर रह के यार से
बोतलों की शक्ल ही, असली नशा उत्तेजना
चौक-चौबारे में चुस्की, मौज कर मस्ती मना ||
aur LEADERS Lutate rahen ||
kamaal ka likha hai shastri ji.har vishya par likhne me aap mahir hain.
जवाब देंहटाएंआदरनीय शास्त्री जी मानव को अपना दास बनाकर बर्बाद करने वाली सुरा पर आपकी रचना बहुरत अच्छी है.इस विषय पर जागरण जंक्शन पर मेरा आलेख शराब आपको पीती है,जो मैंने कुछ समय पूर्व लिखा था कृपया पढ़ें.ये पोस्ट १.७.२००११ को प्रकाशित हुई थी.(यदि रूचि हो तो)
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