ये हमारी तरह है सरल औ' सुगम, सारे संसार में इसका सानी नहीं। जो लिखा है उसी को पढ़ो मित्रवर, बोलने में कहीं बेईमानी नहीं। BUT व PUT का नहीं भेद इसमें भरा, धाँधली की कहीं भी निशानी नहीं। व्याकरण में भरा पूर्ण विज्ञान है, जोड़ औ' तोड़ की कुछ कहानी नहीं। सन्धि नियमों में पूरी उतरती खरी, मातृभाषा हमारी बिरानी नहीं। मेरे भारत की भाषाएँ फूलें-फलें, हमको सन्तों की वाणी भुलानी नहीं। "रूप" इसका सँवारें सकल विश्व में, रुकने पाए हमारी रवानी नहीं। |
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गुरुवार, 8 सितंबर 2011
"मातृभाषा हमारी बिरानी नहीं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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जिने ज्ञान सिखाया है,
जवाब देंहटाएंदुनिया को दिखलाया है।
kya baat hai....khoobsoorat!!
जवाब देंहटाएंहिंदी भारत की पहचान है...
जवाब देंहटाएंमेरे भारत की भाषाएँ फूले-फलें,
जवाब देंहटाएंहमको सन्तों की वाणी भुलानी नहीं।
बहुत अच्छी लगी सर यह रचना।
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कल 09/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
सटीक और सार्थक रचना ..हिंदी से पहचान करती हुई ..
जवाब देंहटाएंहिंदी का महत्त्व दर्शाती एक बहुत ही खूबसूरत रचना।
जवाब देंहटाएंहम सब की पहचान हिंदी से ही तो है ..
जवाब देंहटाएंHindi hamari aur hum uski pehchan hai ......sunder prastuti ke liye badhai
जवाब देंहटाएंवाक़ई.... हिन्दी के महत्व को दर्शाती सरल शब्दों से परिपूरण बेहद खूबसूरत रचना सर ....
जवाब देंहटाएंजात - पांत न देखता, न ही रिश्तेदारी,
जवाब देंहटाएंलिंक नए नित खोजता, लगी यही बीमारी |
लगी यही बीमारी, चर्चा - मंच सजाता,
सात-आठ टिप्पणी, आज भी नहिहै पाता |
पर अच्छे कुछ ब्लॉग, तरसते एक नजर को,
चलिए इन पर रोज, देखिये स्वयं असर को ||
आइये शुक्रवार को भी --
http://charchamanch.blogspot.com/
वाह! बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंBeautiful and very significant creation !
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक.
जवाब देंहटाएंरामराम.
हिंदी हमारी पहचान है !
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन...उम्दा!!!
जवाब देंहटाएंसटीक और सार्थक रचना ..हिंदी से पहचान करती हुई ..
जवाब देंहटाएंक ख ग घ पे बहुत सुन्दर कविता लिखी आपने.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर...
जवाब देंहटाएंहिंदी पर इतनी सटीक और सुन्दर रचना के लिए आभार !
जवाब देंहटाएंआप की रचना पढ़ते पढ़ते ये दो पंक्तियाँ उभर आयीं !
बैठ कर आओ सोचें ,मनन तो करें,
बन न पायी अभी तक क्यूँ रानी नहीं !
बहुत ही बढि़या प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंमेरे भारत की भाषाएँ फूलें-फलें,
जवाब देंहटाएंहमको सन्तों की वाणी भुलानी नहीं।
Good post .Hindi font not responding shaashtriji .
मेरे भारत की भाषाएँ फूलें-फलें,
जवाब देंहटाएंहमको सन्तों की वाणी भुलानी नहीं।
भाषा के विषय में स्तुत्य विचार हैं आपके .उदगार हमारे भी हैं यह .यही है भारत का सहभाव . बृहस्पतिवार, ८ सितम्बर २०११
गेस्ट ग़ज़ल : सच कुचलने को चले थे ,आन क्या बाकी रही.
ग़ज़ल
सच कुचलने को चले थे ,आन क्या बाकी रही ,
साज़ सत्ता की फकत ,एक लम्हे में जाती रही ।
इस कदर बदतर हुए हालात ,मेरे देश में ,
लोग अनशन पे ,सियासत ठाठ से सोती रही ।
एक तरफ मीठी जुबां तो ,दूसरी जानिब यहाँ ,
सोये सत्याग्रहियों पर,लाठी चली चलती रही ।
हक़ की बातें बोलना ,अब धरना देना है गुनाह
ये मुनादी कल सियासी ,कोऊचे में होती रही ।
हम कहें जो ,है वही सच बाकी बे -बुनियाद है ,
हुक्मरां के खेमे में , ऐसी खबर आती रही ।
ख़ास तबकों के लिए हैं खूब सुविधाएं यहाँ ,
कर्ज़ में डूबी गरीबी अश्क ही पीती रही ,
चल ,चलें ,'हसरत 'कहीं ऐसे किसी दरबार में ,
शान ईमां की ,जहां हर हाल में ऊंची रही .
गज़लकार :सुशील 'हसरत 'नरेलवी ,चण्डीगढ़
'शबद 'स्तंभ के तेहत अमर उजाला ,९ सितम्बर अंक में प्रकाशित ।
विशेष :जंग छिड़ चुकी है .एक तरफ देश द्रोही हैं ,दूसरी तरफ देश भक्त .लोग अब चुप नहीं बैठेंगें
दुष्यंत जी की पंक्तियाँ इस वक्त कितनी मौजू हैं -
परिंदे अब भी पर तौले हुए हैं ,हवा में सनसनी घोले हुए हैं ।
मेरे भारत की भाषाएँ फूलें-फलें,
हमको सन्तों की वाणी भुलानी नहीं।
भाषा के विषय में स्तुत्य विचार हैं आपके .उदगार हमारे भी हैं यह .यही है भारत का सहभाव .
हिंदी भाषा की गरिमा बढाती हुई सुन्दर रचना .......
जवाब देंहटाएंहम हिंदी भाषी ....हिंदी ही हमारी पहचान है ........आभार सबको फिर से याद दिलाने के लिए
जवाब देंहटाएंanu
sachmuch humari bhasha me koi dhaandli nahi....atiuttam..lajabaab.
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