ठण्डी-ठण्डी हवा चल रही, सिहरन बढ़ती जाए! आओ साथी प्यार करें हम, मौसम हमें बुलाए!! त्यौहारों की धूम मची है, पंछी कलरव गान सुनाते। बया-युगल तिनके ला करके, अपना विमल-वितान बनाते। झूम-झूमकर रसिक भ्रमर भी, गुन-गुन गीत सुनाए! आओ साथी प्यार करें हम, मौसम हमें बुलाए!! बीत गई बरसात हुआ, गंगा का निर्मल पानी। नीले नभ पर सूरज-चन्दा, चाल चलें मस्तानी। उपवन में भोली कलियों का, कोमल मन मुस्काए! आओ साथी प्यार करें हम, मौसम हमें बुलाए!! हलचल करते रहना ही तो, जीवन के लक्षण हैं। चार दिनों के लिए चाँदनी, बाकी काले क्षण हैं। बार-बार यूँ ही जीवन में, सुखद चन्द्रिका छाए! आओ साथी प्यार करें हम, मौसम हमें बुलाए!! रोली-अक्षत-चन्दन लेकर, करें आज अभिनन्दन। सुख देने वाली सत्ता का, आओ करें हम वन्दन। उसकी इच्छा के बिन कोई, पत्ता हिल ना पाए! आओ साथी प्यार करें हम, मौसम हमें बुलाए!! |
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बुधवार, 21 सितंबर 2011
"सुखद चन्द्रिका छाए" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बहुत बेहतरीन, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
कोमल भावों से ओत-प्रोत रचना, बधाई।
जवाब देंहटाएंखुबसूरत ||
जवाब देंहटाएंबधाई ||
badalte mausam ki dastak deti hui komal man bhavan post.badhaai.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना... धन्यवाद!!!
जवाब देंहटाएंबीत गई बरसात हुआ,
जवाब देंहटाएंगंगा का निर्मल पानी।
नीले नभ पर सूरज-चन्दा,
चाल चलें मस्तानी।
वाह!! बहुत खूब बहुत सुंदर रचना
कुछ लोग हैं जिनकी टिप्पणियों के बिना मुझे हमेशा मेरी पोस्ट अधूरी सी लगती है आप भी उन्हीं में से एक हो समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है साथ ही आपकी महत्वपूर्ण टिप्पणी की प्रतीक्षा भी धन्यवाद.... :)
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
मौसम की पुकार ऐसे ही रसमय बनी रहे।
जवाब देंहटाएंसरस गीत ...
जवाब देंहटाएंsundar saras geet.
जवाब देंहटाएंसुंदर व प्रवाहमान रचना.
जवाब देंहटाएंरोली-अक्षत-चन्दन लेकर,
जवाब देंहटाएंकरें आज अभिनन्दन।
आज की रचना का महत्त्व बहुत ही बढ़िया है।
वाह! क्या बात है
जवाब देंहटाएंNice post .
जवाब देंहटाएंपूछा है तो सुनो,
अब सो जाओ
लेकिन थकना मस्ट है पहले
थकने के लिए
चाहो तो जागो
चाहो तो भागो
कौन किसे छोड़ता है
जिसे देखो यहां वो नोचता है
हरेक दूसरे को निचोड़ता है
कोई कोई तो भंभोड़ता है
ख़ुशनसीब है वो जो तन्हा है
कि महफूज़ है मुकम्मल वो
सरे ज़माना आशिक़ मिलते कहां हैं ?
हॉर्मोन में उबाल प्यार तो नहीं
पानी बहा देना प्यार तो नहीं
क़तरा जहां से भी टपके
आख़िर भिगोता क्यों है
ये इश्क़ मुआ जगाता क्यों है ?
ये पंक्तियां डा. मृदुला हर्षवर्धन जी के इस सवाल के जवाब में
अब सो जाऊँ या जागती रहूँ ?
बीत गई बरसात हुआ,
जवाब देंहटाएंगंगा का निर्मल पानी।
नीले नभ पर सूरज-चन्दा,
चाल चलें मस्तानी।
उपवन में भोली कलियों का,
कोमल मन मुस्काए!
आओ साथी प्यार करें हम,
मौसम हमें बुलाए!!
अदभुत,अनुपम,शानदार
अभिव्यक्ति से मन मग्न
हो गया है,शास्त्री जी.
मेरे ब्लॉग पर आपका इंतजार है.
शरद का अहसास कराती रचना.
जवाब देंहटाएंहलचल करते रहना ही तो,
जवाब देंहटाएंजीवन के लक्षण हैं।
चार दिनों के लिए चाँदनी,
बाकी काले क्षण हैं।
बहुत ही अच्छी पंक्तियाँ हैं सर!
सादर
कोमल भावो का मनोहारी चित्रण ।
जवाब देंहटाएंboht vadiyaa jee
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएं