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रविवार, 11 सितंबर 2011
"पाँच मुक्तक" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आप तो हर एक फन में माहिर हैं शास्त्री जी.
जवाब देंहटाएंwaah shastri ji ..chha gaye aap to....:))
जवाब देंहटाएंदिल तो सूखा कुआँ नहीं होता,
जवाब देंहटाएंबिन लिखे मजमुआँ नहीं होता।
लोग पल-पल की ख़बर रखते हैं-
आग के बिन धुँआ नहीं होता।
shandar muktak
बड़ी गहरी बात है।
जवाब देंहटाएं(कुछ भूमिका में उस शख्स के बारे में भी बता देते। हम तो नहीं?)
जानते हैं सच तभी तो मौन हैं वो,
जवाब देंहटाएंऔर ज्यादा क्या कहें हम कौन हैं वो।
जो हमारे दिल में रहते थे हमेशा-
हरकतों से हो गए अब गौण हैं वो।१।
Good .
बहुत सुन्दर मुक्तक...कौन हैं वो?
जवाब देंहटाएंप्रत्येक मुक्तक एक से बढ़ कर एक.जीवन के यथार्थ छिपे हैं.
जवाब देंहटाएंएक से बढ़ कर एक ||
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
आपको बहुत बहुत बधाई |
सरल शब्दों में विरल दर्शन।
जवाब देंहटाएंआ. शास्त्री जी हर मुक्तक अपने आप में सम्पूर्ण अभिव्यक्ति है। बधाई।
जवाब देंहटाएंआप तो हर एक फन में माहिर हैं शास्त्री जी.
जवाब देंहटाएंकविता के बारे में सचमुच आपका जवाब नहीं।
जवाब देंहटाएं------
क्यों डराती है पुलिस ?
घर जाने को सूर्पनखा जी, माँग रहा हूँ भिक्षा।
आप तो माहिर हैं शास्त्री जी.
जवाब देंहटाएंSACH .
http://hbfint.blogspot.com/2011/09/8.html
वैसे चारों मुक्तक बढ़िया हैं ..........लगता है कोई खलिश है जो जा जाकर वापस दस्तक दे जाती है
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी बता दीजिये कौन है वो .......देखिये सभी पूछ रहे हैं
कोई आया था हौसले भरने,
जवाब देंहटाएंकोई आया था चोंचले करने।
कोई आया था खास मक़सद से-
कोई आया था फासले करने।
waah bentreen sabhi muktak
मित्रों!
जवाब देंहटाएंआप लोग मुझसे सच उगलवाने का इतना आग्रह कर रहे हैं तो बता ही देता हूँ।
--
कल अपनी प्रिय शिष्या से बहुत दिनों के बाद लम्बी चैटिंग हुई और ये मुक्तक बन गए।
--
एक बात और-
मेरे और मेरी शिष्या वन्दना गुप्ता से मेरे मतभेद हुए थे लेकिन कभी भी मन भेद नहीं हुआ और अब तो सब मतभेद भी समाप्त हो गये गए हैं।
हा हा हा ......देखा मैं यही कह रही थी बता देना चाहिए सबको .........आखिर पता तो चले कि ये उपज आखिर है कहाँ की .....वैसे मैं समझ तो गयी थी और चाहती तो बता देती मगर सोचा आपका ब्लॉग है आप ही बताएं तभी अच्छा लगेगा.
जवाब देंहटाएंइतनी मजबूत राह थी पाई,
जवाब देंहटाएंएक बरसात में बनी खाई।
दोष क्यों दे रहे हो लहरों को-
जब किनारे हुए हैं हरजाई।५।
वाकई बहुत खूब सर लाजवाब....
समय मिले आपको कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर
आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
दोष क्यों दे रहे हो लहरों को-
जवाब देंहटाएंजब किनारे हुए हैं हरजाई....
उत्तम मुक्तक हैं सर... संदेशात्मक...
सादर...
पहले तीं तो कतए हैं....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया शास्त्री जी | आपको प्रणाम|
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग में भी पधारें |
**मेरी कविता**
waha bahut khub...
जवाब देंहटाएंजानते हैं सच तभी तो मौन हैं वो,
जवाब देंहटाएंऔर ज्यादा क्या कहें हम कौन हैं वो।
जो हमारे दिल में रहते थे हमेशा-
हरकतों से हो गए अब गौण हैं वो।१।सभी मुक्तक सुन्दर लेकिन इसका ज़वाब नहीं .दिल के बहुत करीब हैं वो ,पीठ किये बैठा चित चोर है वो ,.http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2011/09/blog-post_13.हटमल
अफवाह फैलाना नहीं है वकील का काम .
एक से बढ़कर एक हैं सारे मुक्तक ..........बहुत खूब
जवाब देंहटाएंमुक्तक पसंद आये...
जवाब देंहटाएं