चाहत मन में अगर हो, बन जाते सब काम। श्रम के बिन संसार में, कभी न होता नाम।। केवल कर्म प्रधान है, जीवन का आधार। बैठे-ठाले कभी भी, मिले नहीं उपहार।। चन्दा, सूरज धरा भी, चलते हैं दिन-रात। जो देते जड़-जगत को, शीतल-सुखद प्रभात।। चंचल नदियाँ ही करें, कल-कल, छल-छल शोर। शान्त समन्दर की लहर, मन को करें विभोर।। छोटी-छोटी बात पर, करना नहीं विवाद। दुख की घड़ियाँ भूलकर, सुख को करना याद।। |
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शुक्रवार, 9 सितंबर 2011
"दोहे-मन को करें विभोर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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छोटी-छोटी बात पर, करना नहीं विवाद।
जवाब देंहटाएंदुख की घड़ियाँ भूलकर, सुख को करना याद।।
Bahut sundar
har pal har dadhi
kahatha hai man
सुन्दर संदेश दे्ते सभी दोहे लाजवाब्।
जवाब देंहटाएंसही उपदेश ...सन्देश देती सुंदर रचना ..!!
जवाब देंहटाएंशनिवार (१०-९-११) को आपकी कोई पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर है ...कृपया आमंत्रण स्वीकार करें ....और अपने अमूल्य विचार भी दें ..आभार.
जवाब देंहटाएंदोहे बहुत अच्छे लगे |ये ग्यान् वर्धक और प्रेरक लगे
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत सुंदर और सार्थक दोहे।
जवाब देंहटाएंसार्थक सीख देते अच्छे दोहे ..
जवाब देंहटाएंदुख की घड़ियाँ भूलकर,
जवाब देंहटाएंसुख को करना याद ||
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
खूबसूरत
जवाब देंहटाएंहर दोहा अपने आप में परिपूर्ण
जवाब देंहटाएंलाजवाब बहुत ही सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंछोटी-छोटी बातें देती बड़ी सीख।
जवाब देंहटाएंकेवल कर्म प्रधान है, जीवन का आधार।
जवाब देंहटाएंबैठे-ठाले कभी भी, मिले नहीं उपहार।।
बहुत सही सीख देती रचना के लिये आभार.
रामराम.
केवल कर्म प्रधान है, जीवन का आधार।
जवाब देंहटाएंबैठे-ठाले कभी भी, मिले नहीं उपहार।।
बेहद सार्थक सीख देती काव्यांजलि परोसी है भाई साहब आपने !बधाई !
बृहस्पतिवार, ८ सितम्बर २०११
गेस्ट ग़ज़ल : सच कुचलने को चले थे ,आन क्या बाकी रही.
ग़ज़ल
सच कुचलने को चले थे ,आन क्या बाकी रही ,
साज़ सत्ता की फकत ,एक लम्हे में जाती रही ।
इस कदर बदतर हुए हालात ,मेरे देश में ,
लोग अनशन पे ,सियासत ठाठ से सोती रही ।
एक तरफ मीठी जुबां तो ,दूसरी जानिब यहाँ ,
सोये सत्याग्रहियों पर,लाठी चली चलती रही ।
हक़ की बातें बोलना ,अब धरना देना है गुनाह
ये मुनादी कल सियासी ,कोऊचे में होती रही ।
हम कहें जो ,है वही सच बाकी बे -बुनियाद है ,
हुक्मरां के खेमे में , ऐसी खबर आती रही ।
ख़ास तबकों के लिए हैं खूब सुविधाएं यहाँ ,
कर्ज़ में डूबी गरीबी अश्क ही पीती रही ,
चल ,चलें ,'हसरत 'कहीं ऐसे किसी दरबार में ,
शान ईमां की ,जहां हर हाल में ऊंची रही .
गज़लकार :सुशील 'हसरत 'नरेलवी ,चण्डीगढ़
'शबद 'स्तंभ के तेहत अमर उजाला ,९ सितम्बर अंक में प्रकाशित ।
विशेष :जंग छिड़ चुकी है .एक तरफ देश द्रोही हैं ,दूसरी तरफ देश भक्त .लोग अब चुप नहीं बैठेंगें
दुष्यंत जी की पंक्तियाँ इस वक्त कितनी मौजू हैं -
परिंदे अब भी पर तौले हुए हैं ,हवा में सनसनी घोले हुए हैं ।
blog par do teen din baad aana hua electricity breakdown hone ke karan internet nahi kar paai.aaj hi theek hui hai.abhi aapke dohe padhe bahut achche lage.jo miss hue hain vo bhi padhungi.
जवाब देंहटाएंसब मिलकर रहें।
जवाब देंहटाएंbahut khoob ..shastri ji ..antim dohe par anusaran karen to...sab kuchh apne aap theek ho jayega
जवाब देंहटाएंचन्दा, सूरज धरा भी, चलते हैं दिन-रात।
जवाब देंहटाएंजो देते जड़-जगत को, शीतल-सुखद प्रभात।।
माफ़ी चाहेंगे देर से पठन का आपके कलात्मक दोहों का तथ्यात्मक स्वरुप विषद है , बहुत -२ शुभकामनायें जी /
सभी दोहे..अपने में कोई न कोई सीख समेटे हुए हैं .अच्छी ..प्रेरणादायी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी दोहे..अपने में कोई न कोई सीख समेटे हुए हैं .अच्छी ..प्रेरणादायी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंप्रेरणा देते हुए अच्छे दोहे.
जवाब देंहटाएंछोटी-छोटी बात पर, करना नहीं विवाद।
जवाब देंहटाएंदुख की घड़ियाँ भूलकर, सुख को करना याद।।
बहुत ही अच्छे और प्रेरक दोहे।
सादर
अच्छे दोहे ढेर सारी सीख समेटे हुए हैं
जवाब देंहटाएंबहुत - बहुत - बहुत सुन्दर दोहे |
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर सीख और सन्देश को देती आपके दोहे बहुत सुन्दर लगे... आभार
जवाब देंहटाएंbahut hee prempoorn dohe guru jeee
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत ही ज्ञानवर्धक एवं सारगर्भित दोहे....
जवाब देंहटाएंवाह!!!
बहुत सुंदर दोह
जवाब देंहटाएं