जीवित माता-पिता को, पुत्र रहे दुत्कार। पितृपक्ष में उमड़ता, झूठा श्रृद्धा प्यार।१। जनसेवक करने लगे, जनता का आखेट। घोटाले करके भरें, मोटे अपने पेट।२। भूल गये कर्तव्य को, याद रहा अधिकार। सत्याग्रह सच्चे करें, राज करें मक्कार।३। प्रजातन्त्र परिवेश में, पोषित भ्रष्टाचार। गद्दारों के सामने, शासन है लाचार।४। नेता रहते ठाठ से, मरते हैं निर्दोष। पहन केंचुली दया की, गिना रहे गुण-दोष।५। |
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शुक्रवार, 23 सितंबर 2011
"दोहे-झूठा श्रृद्धा प्यार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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खूबसूरत दोहे।
जवाब देंहटाएंsundar dohay
जवाब देंहटाएंमयंक जी नमस्कार । सुन्दर दोहे । मुझे ए लाइने अच्छी लगी। आपका मेरे ब्लाग पर स्वागत है। नेता रहते ठाठ से, मरते हैं निर्दोष
जवाब देंहटाएंपहन केंचुली दया की, गिना रहे गुण-दोष
भावयुक्त रचना।
जवाब देंहटाएंसच में अपने माता पिता के साथ ठीक व्यवहार न करने वाले पितृ पक्ष में दुनिया भर के कर्मकांड करते हैं।
गहरा कटाक्ष।
कपूत
जवाब देंहटाएंराज अधिकारी
भ्रष्टाचार
और नेता ||
मौज में--
दिल है की
सुधरने का नाम
ही नहीं लेता ||
बेबस आम जनता |
क्या करे --
बस ऐसे ही मरे |
आभार ||
जीवित माता-पिता को, पुत्र रहे दुत्कार।
जवाब देंहटाएंपितृपक्ष में उमड़ता, झूठा श्रृद्धा प्यार।१
सबसे दुखद यह ही है.
प्रभावी दोहे.
बहुत सही लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंsarahneey dohe....wah....wah....
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसूरत और भावमय कविता ...
जवाब देंहटाएंजीवित माता-पिता को, पुत्र रहे दुत्कार।
जवाब देंहटाएंपितृपक्ष में उमड़ता, झूठा श्रृद्धा प्यार।१।
सही बात कही है सर!
सादर
मयंकजी,
जवाब देंहटाएंसबका तो नहीं, पर यह ड़र है कुछेकों का जो अपने किए हुए कुकृत्यों को जानते हुए अपने अनिष्ट के भय से यह कर्मकांड़ करते हैं।
जीवित माता-पिता को पुत्र रहे दुत्कार
जवाब देंहटाएंपित्र पक्ष में उमड़ता झूठा श्रद्धा प्यार ...
वाह!! असल बात तो यही है।
शानदार पोस्ट....
आपके दोहे तो सत्सैय्या के दोहे जैसे मार कर रहे हैं.
जवाब देंहटाएंबड़े ही सामयिक दोहे।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सटीक दोहे...
जवाब देंहटाएंसत्य वचन
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब.
जवाब देंहटाएंरामराम.
घाव करें गंभीर...ये आपक़े दोहे...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन दोहे.
जवाब देंहटाएंभूल गये कर्तव्य को, याद रहा अधिकार...
जवाब देंहटाएंसर्वत्र यही दिख पड़ता है!
जीवित माता-पिता को पुत्र रहे दुत्कार
जवाब देंहटाएंपित्र पक्ष में उमड़ता झूठा श्रद्धा प्यार ...
शास्त्री जी नमस्कार ।
वाह!बहुत गहरी चोट की है आपने ! आशा है की यही भावना आगे की रचनाओं में भी जारी रहेगा !
सारे दोहे सटीक लिखे हैं ...
जवाब देंहटाएंBahut sunder dohe hei ..
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढि़या ...।
जवाब देंहटाएंgagar men sagar bhar diye hain aap, dohon ko padhkar aisa hi laga.
जवाब देंहटाएंमयंक जी नमस्कार । सुन्दर दोहे ।
जवाब देंहटाएंजीवित माता - पिता को , पुत्र रहे दुत्कार ।
जवाब देंहटाएंपितृपक्ष में उमड़ता , झुठा श्रृद्धा प्यार ।
आदरणीय शास्त्री जी नमस्कार ।
पैदा होता है धर्म मरकर बनता है सम्प्रदाय । यही स्थिति आज हमारे समाज की हो गयी है । हम पितृपक्ष के वास्तविक उद्देश्य को भूलकर लकीर के फकीर बन गये है । हम अपने जीवित माता - पिता के साथ तो ठीक से व्यवहार करते है नहीं , और उनके मरने पर पितृपक्ष में तरह - तरह के लोक दिखावटी कर्मकांड करते है ।
बहुत सुन्दर और कटाक्षपूर्ण कविता ...... आभार ।
bahut sateek aur laajabab dohe.na jaane mujhse kaise choot gaye the aaj hi facebook se pata chala.
जवाब देंहटाएंसार्थक दोहे सर....
जवाब देंहटाएंसादर.