गली-गली में कृष्ण-कन्हैया, खेल रहे हैं जम कर होली! रंगों का मौसम आया है, थिरक रही है हँसी ठिठोली!! राधारानी ओढ़ चुनरिया, ढूँढ रही श्यामल साँवरिया, नटवर-नागर मन भाया है, चहक रही है दामन-चोली! करते हैं सब हँसी ठिठोली!! चन्दा हँसता नील-गगन में, धवल चाँदनी है आँगन में, सुमन चमन में मुस्काया है, सजी हुई सुन्दर रंगोली! थिरक रही है हँसी ठिठोली!! मनमोहक मदमस्त नजारे, नेह जगाती हैं बौछारें, कोयल ने गाना गाया है, अच्छी लगती मीठी बोली! थिरक रही है हँसी ठिठोली!! भेद-भाव का भूत भगा दो, प्रेम-प्रीत की अलख जगा दो, होली ने यह सिखलाया है, आओ बनाएँ अपनी टोली! थिरक रही है हँसी ठिठोली!! (चित्र काव्य-तरंग से साभार) |
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शनिवार, 27 फ़रवरी 2010
“रंगों का मौसम आया है” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010
“होली का आया त्यौहार” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
प्राची गुझिया बना रही है, दादी पूड़ी बेल रही है। कभी-कभी पिचकारी लेकर, रंगों से वह खेल रही है।। तलने की आशा में आतुर गुझियों की है लगी कतार। घर-घर में खुशियाँ उतरी हैं, होली का आया त्यौहार।। मम्मी जी दे दो खाने को, गुझिया-मठरी का उपहार। सजता प्राची के नयनों में, मिष्ठानों का मधु-संसार।। सजे-धजे हैं बहुत शान से मीठे-मीठे शक्करपारे। कोई पीला, कोई गुलाबी, आँखों को ये लगते प्यारे।। होली का अवकाश पड़ गया, दही-बड़े कल बन जायेगें। चटकारे ले-लेकर इनको, बड़े मजे से हम खायेंगे।। |
गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010
“बरफी-लड्डू के चित्र देखकर, अपने मन को बहलाते हैं” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
बुधवार, 24 फ़रवरी 2010
“होली का मौसम आया है” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
"दे रहा मधुमास दस्तक!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010
“लगता है बसन्त आया है” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
हर्षित होकर राग भ्रमर ने गाया है! लगता है बसन्त आया है!! नयनों में सज उठे सिन्दूरी सपने से, कानों में बज उठे साज कुछ अपने से, पुलकित होकर रोम-रोम मुस्काया है! लगता है बसन्त आया है!! खेतों ने परिधान बसन्ती पहना है, आज धरा ने धारा नूतन गहना है, आम-नीम पर बौर उमड़ आया है! लगता है बसन्त आया है!! पेड़ों ने सब पत्र पुराने झाड़ दिये हैं, वैर-भाव के वस्त्र सुमन ने फाड़ दिये है, होली की रंगोली ने मन भरमाया है! लगता है बसन्त आया है!! (चित्र गूगल सर्च से साभार) |
सोमवार, 22 फ़रवरी 2010
“चलो होली खेलेंगे” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
आई बसन्त-बहार, चलो होली खेलेंगे!! रंगों का है त्यौहार, चलो होली खेलेंगे!! बागों में कुहु-कुहु बोले कोयलिया, धरती ने धारी है, धानी चुनरिया, पहने हैं फुलवा के हार, चलो होली खेलेंगे!! हाथों में खन-खन, खनके हैं चुड़ियाँ. पावों में छम-छम, छनके पैजनियाँ, चहके हैं सोलह सिंगार, चलो होली खेलेंगे!! कल-कल बहती है, नदिया की धारा. सजनी को लगता है साजन प्यारा, मुखड़े पे आया निखार, चलो होली खेलेंगे!! उड़ते अबीर-गुलाल भुवन में, सिन्दूरी-सपने पलते सुमन में, महके है मन में फुहार! चलो होली खेलेंगे!! (चित्र गूगलसर्च से साभार) |
रविवार, 21 फ़रवरी 2010
“ये कविता नही… भाव हैं” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
शनिवार, 20 फ़रवरी 2010
"फागुन में कुहरा छाया है” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010
“होली आई होली” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010
"सात रंगों से सजने लगी है धरा” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
बुधवार, 17 फ़रवरी 2010
“…..आई होली रे !” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010
“दिन आ गये हैं प्यार के” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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