अब नही मैं दासता का भार ढोना चाहता हूँ। |
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अब नही मैं दासता का भार ढोना चाहता हूँ। |
काटने को फसल सुख की जुड़ गये वो,
जवाब देंहटाएंदुःख आया तो पलट कर मुड़ गये वो,
सभ्यता के नगर में आबाद होना चाहता हूँ।
बन्धनों से मैं तुम्हारे मुक्त होना चाहता हूँ।।
बहुत सुंदर पंक्तियों के साथ..... बहुत सुंदर रचना....
आभार,,,,
राह हैं सीधी-सरल, पर हो गये दिल तंग है,
जवाब देंहटाएंस्वार्थ की परमार्थ से, होती सदा ही जंग है,
आँसुओं से सींचकर मैं प्यार बोना चाहता हूँ।
बन्धनों से मैं तुम्हारे मुक्त होना चाहता हूँ।।
बंधनों से मुक्त होने की तडप शब्दों में साफ़ झलक रही है.....काश स्वार्थ और परमार्थ की जंग खत्म हो जाये तो हर जगह प्यार ही प्यार हो....खूबसूरत अभिव्यक्ति
हमारे बन्धनों से तो कभी दूर नहीं हो सकते.
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव और लाजवाब प्रस्तुति, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम
अब नही मैं दासता का भार ढोना चाहता हूँ।
जवाब देंहटाएंबन्धनों से मैं तुम्हारे मुक्त होना चाहता हूँ।।
बहुत खूब शास्त्री जी . मैं भी यही चाहता हूँ
har baar ki tarah phir ek sundar abhivayakti..
जवाब देंहटाएंअब नही मैं दासता का भार ढोना चाहता हूँ। nice
जवाब देंहटाएंसभ्यता के नगर में आबाद होना चाहता हूँ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर पंक्ति है ये तो...
काटने को फसल सुख की जुड़ गये वो,
जवाब देंहटाएंदुःख आया तो पलट कर मुड़ गये वो,
सभ्यता के नगर में आबाद होना चाहता हूँ।
बन्धनों से मैं तुम्हारे मुक्त होना चाहता हूँ।।
bahut hi sundar panktiyan aur utne hi sundar bhav.
bahut he umdaa baat kah di aapne guru ji!
जवाब देंहटाएंराह हैं सीधी-सरल, पर हो गये दिल तंग है,
जवाब देंहटाएंस्वार्थ की परमार्थ से, होती सदा ही जंग है,
आँसुओं से सींचकर मैं प्यार बोना चाहता हूँ।
बन्धनों से मैं तुम्हारे मुक्त होना चाहता हूँ।।
Bahut gahare bhav ...Aabhar!!
कल 12/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
राह हैं सीधी-सरल, पर हो गये दिल तंग है,
जवाब देंहटाएंस्वार्थ की परमार्थ से, होती सदा ही जंग है,
आँसुओं से सींचकर मैं प्यार बोना चाहता हूँ।
बन्धनों से मैं तुम्हारे मुक्त होना चाहता हूँ।।
बहुत सुन्दर
अनुभूति : ईश्वर कौन है ?मोक्ष क्या है ?क्या पुनर्जन्म होता है ?
मेघ आया देर से ......
.आँसुओं से सींचकर मैं प्यार बोना चाहता हूँ।
जवाब देंहटाएंबन्धनों से मैं तुम्हारे मुक्त होना चाहता हूँ।।
लाजवाब