उपवन मुस्काया है! अब बसन्त आया है!
कुहासे की चादर, धरा से छँट गई। फैली हुई धवल रुई, गगन से हट गई। उपवन मुस्काया है! अब बसन्त आया है!
सूर्य की रश्मियों से, दिवस प्रकाशित हैं। वासन्ती सुमनों से , तन-मन सुवासित हैं। उपवन मुस्काया है! अब बसन्त आया है!
होली का उल्लास है, आँगन-चौराहों पर। चहल-पहल नाचती है, पगदण्डी-राहों पर।। उपवन मुस्काया है! अब बसन्त आया है!
गुनगुनी धूप ने, मोर्चे सम्भाले हैं। पर्वत भी छोड़ रहे, बर्फ के दुशाले हैं। उपवन मुस्काया है! अब बसन्त आया है!
(चित्र गूगल सर्च से साभार) |
वसंत पर एक और धूम मचाती कविता...
जवाब देंहटाएंलगता है आप एक कविता संग्रह ही वसंत पर निकाल रहे हैं.. :)
अच्छा रहेगा.. अपने आप में अनूठा होगा ये संग्रह.
जय हिंद... जय बुंदेलखंड...
बसंत के आगमन का वर्णन बहुत ही सुंदर अंदाज में..बढ़िया लगा बधाई शास्त्री जी..कविता बढ़िया लगी
जवाब देंहटाएं"शब्द चयन शानदार है, लेकिन भोपाल में सुबह बारिश हुई है लिहाज़ा यहाँ पर बसंत दूर है पलाश के अते-पते ही नहीं हैं लगता है गर्म पानी से होली मनेगी।"
जवाब देंहटाएंप्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com
wah wah wah...
जवाब देंहटाएंbahut sahi baat kahi hai mausamm ke mutaabiq...
सही बात है. आम भी बौरा गये हैं. बसन्त आ गया है.
जवाब देंहटाएंमौसम ने कवियों से
जवाब देंहटाएंगीत मधुर रचवाए!
भौंरों ने कलियों के
घूँघट हैं उठवाए!
उपवन मुस्काया है,
लो वसंत आया है!
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कह रहीं बालियाँ गेहूँ की - "मेरे लिए,
नवसुर में कोयल गाता है - मीठा-मीठा-मीठा!"
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संपादक : सरस पायस
बहुत लाजवाब वर्णन.
जवाब देंहटाएंरामराम.
प्रक्रिती का इतना मनमोहक चित्रण...........बहुत सुन्दर रचना!!
जवाब देंहटाएंसादर
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
aapki rachna ne to poora mahol vasantik kar diya............bahut sundar
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