कहीं है ज्वार और भाटा कहीं है, कहीं है सुमन और काँटा कहीं है, करीने से सजने लगी गन्दगी है! जवानी में थकने लगी जिन्दगी है!! जुगाड़ों से चलने लगी जिन्दगी है!!! कहीं है अन्धेरा कहीं चाँदनी है, कहीं शोक की धुन कहीं रागनी है, मगर गुम हुई गीत से नगमगी है! जवानी में थकने लगी जिन्दगी है!! जुगाड़ों से चलने लगी जिन्दगी है!!! दरिन्दों की चक्की में, घुन पिस रहे हैं, चन्दन को बगुले भगत घिस रहे हैं, दिलों में इबादत नही तिश्नगी है! जवानी में थकने लगी जिन्दगी है!! जुगाड़ों से चलने लगी जिन्दगी है!!! धरा रो रही है, गगन रो रहा है, अमन बेचकर आदमी सो रहा है, सहमती-सिसकती हुई बन्दगी है! जवानी में थकने लगी जिन्दगी है!! जुगाड़ों से चलने लगी जिन्दगी है!!! (चित्र गूगल सर्च से साभार) 5 COMMENTS:
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010
"जुगाड़ों से चलने लगी जिन्दगी है!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
शास्त्री जी प्रणाम, कविताओ में खास रूचि नहीं है. लेकिन जिंदगी और जुगाड़ का जिक्र देखा तो पढने का मन किया. भाव विभोर कर देने वाली रचना. मेरी बधाई स्वीकार करे.
जवाब देंहटाएंwww.gooftgu.blogspot.com
मानवीय त्रासदी के सफल चित्रण की नई परिभाषा गढ़ती है।
जवाब देंहटाएंबहुत सही चित्रण.
जवाब देंहटाएंरामराम.
करीने से सजने लगी गन्दगी है! शास्त्री जी इस एक ही पंक्ति के अनेक अर्थ हैं ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब और बहुत सुंदर लिखा आपने....
जवाब देंहटाएंनोट: लखनऊ से बाहर होने की वजह से .... काफी दिनों तक नहीं आ पाया ....माफ़ी चाहता हूँ....
गीत के साथ-साथ तस्वीर भी बहुत अच्छी है!
जवाब देंहटाएं--
मुझको बता दो -"
"नवसुर में कोयल गाता है -मीठा-मीठा-मीठा! "
--
संपादक : सरस पायस
वाह. बहुत खूब. बहुत बढिया.
जवाब देंहटाएंकरीने से सजने लगी गन्दगी है!
जवाब देंहटाएंजवानी में थकने लगी जिन्दगी है!!
-बहुत ही सुन्दर, शास्त्री जी.
वाह बहुत खूब लिखा है आपने! इस ख़ूबसूरत और सच्चाई को दर्शाती हुई शानदार रचना के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंदरिन्दों की चक्की में, घुन पिस रहे हैं,
जवाब देंहटाएंचन्दन को बगुले भगत घिस रहे हैं,
दिलों में इबादत नही तिश्नगी है!
जवानी में थकने लगी जिन्दगी है!!
जुगाड़ों से चलने लगी जिन्दगी है!!!
वाह........क्या कहूँ.........बहुत बहुत सुन्दर....कठोर यथार्थ को आपने ऐसे चित्रित किया है कि वह ह्रदय बेध जाती है...
बहुत ही सुन्दर रचना...वाह.
कड़्वा सच बयां किया है आपने ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब..।
आभार ।
धरा रो रही है, गगन रो रहा है,
जवाब देंहटाएंअमन बेचकर आदमी सो रहा है,
सहमती-सिसकती हुई बन्दगी है!
जवानी में थकने लगी जिन्दगी है!!
जुगाड़ों से चलने लगी जिन्दगी है!!!
behad sundar prastuti aaj ke halat ko prastut kar diya.
jugaad hi ek aisi cheez hai jo jugaad se nahi chalti
जवाब देंहटाएंयथार्थ को तीखेपन के साथ प्रस्तुत करती सुन्दर रचना के लिए साधुवाद !
जवाब देंहटाएंपढकर लगा जैसे जिंदगी का कच्चा चिटठा बयान कर दिया आपने। बधाई।
जवाब देंहटाएं--------
घूँघट में रहने वाली इतिहास बनाने निकली हैं।
खाने पीने में लोग इतने पीछे हैं, पता नहीं था।
अच्छी कविता। बधाई।
जवाब देंहटाएंजुगाड़ों से चलने लगी जिन्दगी है ...
जवाब देंहटाएंजीवन की हक़ीकत खोल दी आपने ............ बहुत कमाल का लिखा है शास्त्री जी .........
सब से पहले जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनायें रचना हमेशा की तरह बहुत अच्छी लगी धन्यवाद्
जवाब देंहटाएं