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kya baat hai guru ji...
जवाब देंहटाएंaisa mehsoos hua jaise ki main baag mein hoon aur prakriti ka aanand le raha hoon...
aabhaar!!
बहुत शानदार. अपने गीतों और कविताओं को पाडकास्ट भी कीजिये
जवाब देंहटाएंप्रक्रती के सुन्दर रुप क वर्णन करता....बेहतरीन गीत!
जवाब देंहटाएंसादर
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
धानी धरती ने पाया नया घाघरा।
जवाब देंहटाएंरूप कञ्चन कहीं है, कहीं है हरा।।
प्रकृति के स्वरूप का बहुत प्यरा चित्रण
आपके पास प्रकृति चित्रण की अद्भुत कला है।
जवाब देंहटाएंधानी धरती ने पाया नया घाघरा!
जवाब देंहटाएंशुक सुनाने लगे, अपना सुर चटपटा!
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आपने इस गीत को आज बहुत सुंदर
बिंबों से सजाया है!
देश-परिवेश सारा महकने लगा,
जवाब देंहटाएंटेसू अंगार बनकर दहकने लगा,
सात रंगों से सजने लगी है धरा।
रूप कञ्चन कहीं है, कहीं है हरा।।
sunder manmohak ritu gaan.
badhaai.
प्रकृति की अद्भुत छटा का सुन्दर चित्रण।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चित्रण किया आपने.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत सुन्दर शब्दों से प्राकृतिक सौंदर्य वर्णित किया है..
जवाब देंहटाएंदेश-परिवेश सारा महकने लगा,
टेसू अंगार बनकर दहकने लगा,
फागुन आ गया....
बहुत सुंदर धरती मां का श्रांगार आप ने दर्शाया
जवाब देंहटाएंदेश-परिवेश सारा महकने लगा,
जवाब देंहटाएंटेसू अंगार बनकर दहकने लगा,
सात रंगों से सजने लगी है धरा।
रूप कञ्चन कहीं है, कहीं है हरा।।
बहुत सुंदर पंक्तियाँ....
आभार...
देश-परिवेश सारा महकने लगा,
जवाब देंहटाएंटेसू अंगार बनकर दहकने लगा,
सात रंगों से सजने लगी है धरा।
जवाब देंहटाएंरूप कञ्चन कहीं है, कहीं है हरा।।
बहुत सुन्दर रचना शास्त्री जी !
rachna rangon se sarobaar hai :)
जवाब देंहटाएंsabhi prakritik rang bhar diye.........bahut hi sundar manbhavan geet.
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