धधक रही है ज्वाला, मुल्ला-पण्डित के उपदेशों में। |
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शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010
“मन का गीत रचें हम कैसे?” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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आज के हालत पर और मिलावटी सामानों पर बहुत खूबसूरती से लिखा है....सुन्दर कविता....
जवाब देंहटाएंमूँग दल रही है दानवता, मानवता के सीने पर,
जवाब देंहटाएंजालिम झूठ लगाता पहरा, भोले सच के जीने पर,
दहक रहा बनकर अंगारा, उग्रवाद सन्देशों में।
मन का गीत रचें हम कैसे, हिंसा के परिवेशों में।।
कतई गलत नहीं लिखा आपने.. सुन्दर शब्दों में बांधा..
जय हिंद.... जय बुंदेलखंड...
सुंदर और सामयिक गीत!
जवाब देंहटाएं--
मुझको बता दो -
"नवसुर में कोयल गाता है - मीठा-मीठा-मीठा! "
--
संपादक : सरस पायस
बेहतरीन गीत..आनन्द आया.
जवाब देंहटाएंYatharth ko ujagar karati ...Samsamyik rachan!!
जवाब देंहटाएंAabhar!!
यह मार्ग बहुत पथरीला है
जवाब देंहटाएंजीवन कितना जहरीला है
सामयिक और अत्यंत सुन्दर गीत
मन का गीत रचें हम कैसे, हिंसा के परिवेशों में।nice
जवाब देंहटाएंक्या खाये और क्या पी लें अब, दूध-दही हैं जहर भरे,
जवाब देंहटाएंबैंगन, लौकी, मटर, करेला, फल-फूलों में जहर भरे,
बेच रहे घटिया स्वदेश में, बढ़िया है परदेशों में।
मन का गीत रचें हम कैसे, हिंसा के परिवेशों में।
बिलकुल सच कहा आपने..... सुंदर कविता....
मन का गीत रचें हम कैसे, हिंसा के परिवेशों में।।
जवाब देंहटाएंउफ़! अभी पूरी रचना नहीं पढी है। पर यह एक पंक्ति हज़ार पर भारी है। क्योंकि मानसिक हिंसा के शिकार तो हम हर पल हो रहे हैं। और लगा कि ये पंक्ति मेरे दिल की आवाज़ है इस लिये पहले अपने उद्गार प्रकट कर दूँ फिर पूरी रचना पढूँ।
असाधारण शक्ति का पद्य, बुनावट की सरलता और रेखाचित्रनुमा वक्तव्य सयास बांध लेते हैं, कुतूहल पैदा करते हैं। कवि का सत्य से साक्षात्कार दिलचस्प है जिसका जरिया उसके आक्रोश के रूप में हाजिर है। रचना दृष्टि की व्यापकता के चलते हर वर्ग में लोकप्रिय होगी। साधुवाद!
जवाब देंहटाएंaaj to apne desh mein hi apna khoon apmanit ho raha hai phir kya desh aur kya videsh..............bahut hi sundar chitran kiya hai aaj ke halaton ka.
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