♥ एक पुराना गीत ♥ मन-सुमन हों खिले, उर से उर हों मिले, लहलहाता हुआ वो चमन चाहिए। ज्ञान-गंगा बहे, शन्ति और सुख रहे- मुस्कराता हुआ वो वतन चाहिए।। दीप आशाओं के हर कुटी में जलें, राम-लछमन से बालक, घरों में पलें, प्यार ही प्यार हो, प्रीत-मनुहार हो- देश में सब जगह अब अमन चाहिए। लहलहाता हुआ वो चमन चाहिए।। छेनियों और हथौड़ों की झनकार हो, श्रम-श्रजन-स्नेह दें, ऐसे परिवार हों, खेत, उपवन सदा सींचती ही रहे- ऐसी दरिया-ए गंग-औ-जमुन चाहिए। लहलहाता हुआ वो चमन चाहिए।। आदमी से न इनसानियत दूर हो, पुष्प, कलिका सुगन्धों से भरपूर हो, साज सुन्दर सजें, एकता से बजें, चेतना से भरे, मन-औ-तन चाहिए। लहलहाता हुआ वो चमन चाहिए।। |
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शुक्रवार, 11 जून 2010
“वो चमन चाहिए!” (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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महत्वपूर्ण पोस्ट, साधुवाद
जवाब देंहटाएंसच आज ऐसे ही चमन की दरकार है…………बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना।........
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना। साधुवाद !
जवाब देंहटाएंtabeeyat prasann ho gayi.......
जवाब देंहटाएंwaah waah !
pasand****************
रचना में गहरा प्रभाव है
जवाब देंहटाएं---
गुलाबी कोंपलें
The Vinay Prajapati
एक सकारात्मक सोच देती हुई रचना .बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंprabhaavshaali rachna guru ji.
जवाब देंहटाएंसच है ऐसा ही चमन चाहिए....पर स्नेह के सब दरख़्त काट रहे हैं और मन की धरती वीरान कर दी है....
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुन्दर रचना
काश ऐसा हो जाये..
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