गाँधी बाबा के भारत में , जब - जब मक्कारी फलती है । आजादी मुझको खलती है ॥ वोटों की जीवन घुट्टी पी, हो गये पुष्ट हैं मतवाले , केंचुली पहिन कर खादी की, छिप गए सभी विषधर काले , कुछ काम नही बैठे ठाले , करते है केवल घोटाले , अब विदुर नीति तो रही नही, केवल दुर्नीति चलती है। आजादी मुझको खलती है ॥ प्रियतम का प्यार नसीब नही, कितनी ही प्राण-प्यारियों को,दानव दहेज़ का निगल चुका , कितनी निर्दोष नारियों को , फांसी खाकर मरना पड़ता, अबला असहाय क्वारियों को , निर्धन के घर कफ़न पहन - धरती की बेटी पलती है । आजादी मुझको खलती है ॥ निर्बल मजदूर किसानों के, हिस्से में कोरे नारे हैं , चाटुकार , मक्कारों ही के, होते वारे -न्यारे हैं , ये रक्ष संस्कृति के पोषक, जन-गण-मन के हत्यारे हैं , सभ्यता इन्ही की बंधक बन , रोती है आँखें मलती है। आजादी मुझको खलती है ॥ मैकाले की काली शिक्षा, भिक्षा की रीति सिखाती है , शिक्षित बेकारों की संख्या, दिन -प्रतिदिन बढती जाती है , नौकरी उसी के हिस्से में, जो नेताजी का नाती है , है बाल अरुण बूढ़ा-बूढ़ा, तरुणाई ढलती जाती है। आजादी मुझको खलती है ॥ |
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मंगलवार, 22 जून 2010
“आजादी मुझको खलती है!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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प्रियतम का प्यार नसीब नही,
जवाब देंहटाएंकितनी ही प्राण-प्यारियों को,
दानव दहेज़ का निगल चुका ,
कितनी निर्दोष नारियों को ,
फांसी खाकर मरना पड़ता,
अबला असहाय क्वारियों को ,
निर्धन के घर कफ़न पहन -
धरती की बेटी पलती है ।
आजादी मुझको खलती है ॥
सारे जहाँ का दर्द सिमट आया है………………एक बहुत ही भावमयी ,सोते हुयों को जगाने वाली ,यथार्थ का दर्शन कराने वाली रचना।
है बाल अरुण बूढ़ा-बूढ़ा,
जवाब देंहटाएंतरुणाई ढलती जाती है।
आजादी मुझको खलती है ॥
देश की विसंगतियों का सजीव चित्रण करती एक सच्ची रचना....ऐसी आज़ादी पा कर सच ही मन क्षुब्ध हो उठता है
स्वतन्त्रता के बाद देश की दुर्दशा पर आपकी पीड़ा सर्वजनीन है. बढ़िया प्रहार किया है आपने. यह पीड़ा इतनी अधिक और मारक हो गई है कि कवि को विवश होकर ही लिखना पडा है--'आज़ादी मुझको खलती है'; अन्यथा वह खूब जानता है आज़ादी कि कीमत... है न ?
जवाब देंहटाएंसदर--आ.
हर एक भारत वासी के दिल की बात कह दी है आपने आज ! आभार और नमन आपको !
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंआज के हालात पर बिलकुल सटीक लगी आप की यह सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना भाईसाहब..........,आज की परिस्थिति का एकदम सही चित्रण किया है आपने..!!
जवाब देंहटाएंआ गया है ब्लॉग संकलन का नया अवतार: हमारीवाणी.कॉम
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लॉग लिखने वाले लेखकों के लिए खुशखबरी!
ब्लॉग जगत के लिए हमारीवाणी नाम से एकदम नया और अद्भुत ब्लॉग संकलक बनकर तैयार है। इस ब्लॉग संकलक के द्वारा हिंदी ब्लॉग लेखन को एक नई सोच के साथ प्रोत्साहित करने के योजना है। इसमें सबसे अहम् बात तो यह है की यह ब्लॉग लेखकों का अपना ब्लॉग संकलक होगा।
अधिक पढने के लिए चटका लगाएँ:
http://hamarivani.blogspot.com
बहुत ही सशक्त रचना. और सही भी है कायदा-कानून मानने वाले हरएक को ऐसी आजादी खलेगी..
जवाब देंहटाएंदेश की विसंगतियों का सजीव चित्रण करती एक सच्ची रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.
khoobsurat rachna guru ji!
जवाब देंहटाएंआज भारत की यह बदली हुई छवि देख कर तो आज़ादी खलती ही है..आज आम आदमी आज़ाद होकर भी गुलाम से बदतर जीवन यापन कर रहा है..शास्त्री जी आपकी हर एक लाइन एक बेहतरीन भाव दर्शा रही है..आज की ताज़ा हालत पर बनी एक लाज़वाब कविता...धन्यवाद शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंतार तार होती स्थिति का जीवंत वर्णन ।
जवाब देंहटाएंआजादी मुझको खलती है ....देश की विसंगतियों पर
जवाब देंहटाएंसटीक प्रहार किया है....सशक्त और सुन्दर रचना..