“DEATH IS A FISHERMAN” – BY BENJAMIN FRANKLIN अनुवाद-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक” |
दुनिया एक सरोवर है, और मृत्यु इक मछुआरा है! हम मछली हैं अवश-विवश सी, हमें जाल ने मारा है!! मछुआरे को हम जीवों पर कभी दया नही आती है! हमें पकड़कर खा जाने को, मौत नही घबराती है!! तालाबों में झूम रहा है जाल मृत्यु बन घूम रहा है! मछुआरा चुन-चुन कर सबको बेदर्दी से भून रहा है!! आये हैं तो जाना होगा मृत्यु अवश्यम्भावी है! इक दिन तो फँसना ही होगा, जाल नही सद्-भावी है!! |
BENJAMIN FRANKLIN (1706-1790) |
गज़ब का अनुवाद किया है……………एक कटु सत्य को बहुत ही सुन्दरता से उभारा है।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका इस अनुवाद के लिए ! प्रणाम आपको !
जवाब देंहटाएंसार्थक सुन्दर अनुवाद...
जवाब देंहटाएंkhoobsoorat!
जवाब देंहटाएंआप की सहायता से हम इतने महान लोगों को पढ़ पा रहे हैं...शुक्रिया !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अनुवाद
जवाब देंहटाएंअनुवाद एवं प्रस्तुति के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता का बेहतरीन अनुवाद...अंतिम सत्य को बताती हुई ..
जवाब देंहटाएंरचना बहुत ही शानदार है। रचना को पढ़कर बरबस भूपेन हजारिका की याद आ गई।
जवाब देंहटाएंउनका एक गीत है-
उस दिन की बात है रमैय्या नाव लेकर सागर गया
जाल बिछाने को... मछली पकड़ने को
जइयो न रमैय्या जइयो न
तूफान आएगा
आज तो तड़के से
बाई आंख फड़के रे
आज कुछ हो जाएगा
हो..ओ.. उस दिन की बात है
रमैय्या नाव लेकर सागर गया
कभी वक्त निकले तो भूपेन हजारिका की यह सीडी मैं और मेरा साया जरूर सुनिएगा
मुझे लगता है आपको बहुत ही अच्छा लगेगा।
आपको एक शानदार रचना के अनुवाद के लिए बधाई।