आशा और निराशा के क्षण, पग-पग पर मिलते हैं। काँटों की पहरेदारी में, ही गुलाब खिलते हैं। पतझड़ और बसन्त कभी, हरियाली आती है। सर्दी-गर्मी सहने का, सन्देश सिखाती है। यश और अपयश साथ-साथ, दायें-बाये चलते हैं। काँटो की पहरेदारी में, ही गुलाब खिलते हैं। जीवन कभी कठोर कठिन, और कभी सरल सा है। भोजन अमृततुल्य कभी, तो कभी गरल सा है। सागर के खारे जल में, ही मोती पलते हैं। काँटो की पहरेदारी में, ही गुलाब खिलते हैं। |
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सोमवार, 21 जून 2010
“काँटो की पहरेदारी में, ही गुलाब खिलते हैं” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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आपने आज इस रचना में हम सब का मार्गदर्शन किया है ! बेहद उम्दा | शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंआशा और निराशा के क्षण,
जवाब देंहटाएंपग-पग पर मिलते हैं।
काँटों की पहरेदारी में,
ही गुलाब खिलते हैं
मंयक जी लाजवाब रचना है। आप छुट्टियाँ ब्लागिन्घ कर के मना रहे हैं? शुभकामनायें
बहुत सुन्दर सर..बढ़िया रचना ...आभार
जवाब देंहटाएंवाह शास्त्री जी ..एक और कमाल की रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत खुब जी धन्यवाद इस सुंदर रचना के लिये
जवाब देंहटाएंकाँटो की पहरेदारी में,
जवाब देंहटाएंही गुलाब खिलते हैं।
बहुत ही सुन्दर कविता है शास्त्री जी. सीख देती हुई. आभार.
आपने आज इस रचना में हम सब का मार्गदर्शन किया है ! बेहद उम्दा | शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंपथप्रदर्शक रचना ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखते हैं आप...
मैं आज कल बहुत व्यस्त हो गयी हूँ इसलिए नहीं आ पाती हूँ...लेकिन ध्यान में हमेशा रहते हैं सभी लोग...
आपका आभार...!
अच्छा सन्देश देती सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें.
जवाब देंहटाएंवाह्………प्रेरक संदेश देती सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंपतझड़ और बसन्त कभी,
जवाब देंहटाएंहरियाली आती है।
सर्दी-गर्मी सहने का,
सन्देश सिखाती है।
प्रेरणा दायी रचना ! नया बिम्ब है 'काँटों के पहरेदारी में गुलाब का खिलना '
आ गया है ब्लॉग संकलन का नया अवतार: हमारीवाणी.कॉम
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लॉग लिखने वाले लेखकों के लिए खुशखबरी!
ब्लॉग जगत के लिए हमारीवाणी नाम से एकदम नया और अद्भुत ब्लॉग संकलक बनकर तैयार है। इस ब्लॉग संकलक के द्वारा हिंदी ब्लॉग लेखन को एक नई सोच के साथ प्रोत्साहित करने के योजना है। इसमें सबसे अहम् बात तो यह है की यह ब्लॉग लेखकों का अपना ब्लॉग संकलक होगा।
अधिक पढने के लिए चटका लगाएँ:
http://hamarivani.blogspot.com
gulaab khilaa diye aapne!
जवाब देंहटाएंजीवन कभी कठोर कठिन,
जवाब देंहटाएंऔर कभी सरल सा है।
भोजन अमृततुल्य कभी,
तो कभी गरल सा है।
सागर के खारे जल में,
ही मोती पलते हैं।
काँटो की पहरेदारी में,
ही गुलाब खिलते हैं।.....बहुत सुन्दर रचना
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी (कोई पुरानी या नयी ) प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच- ५० ..चर्चामंच
बहुत खूब सर!
जवाब देंहटाएंसादर
लाजवाब रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सरल भाव से लिखी गई रचना बेहद पसंद आया !
जवाब देंहटाएंजीवन कभी कठोर कठिन,
जवाब देंहटाएंऔर कभी सरल सा है।
भोजन अमृततुल्य कभी,
तो कभी गरल सा है।
सागर के खारे जल में,
ही मोती पलते हैं।
काँटो की पहरेदारी में,
ही गुलाब खिलते हैं।......
पूज्य शास्त्री जी ...सरस और गेय रचना!
सादर प्रणाम !!
कठिनाइयाँ ही विकसित होने का मौका देती हैं -और काँटे सुरक्षा - बहुत सार्थक कथन है !
जवाब देंहटाएं