आज देश में उथल-पुथल क्यों, क्यों हैं भारतवासी आरत? कहाँ खो गया रामराज्य, और गाँधी के सपनों का भारत? आओ मिलकर आज विचारें, कैसी यह मजबूरी है? शान्ति वाटिका के सुमनों के, उर में कैसी दूरी है? क्यों भारत में भाई, भाई के, लहू का आज बना प्यासा? कहाँ खो गयी कर्णधार की, मधु रस में भीगी भाषा? कहाँ गयी सोने की चिड़िया, भरने दूषित-दूर उड़ाने? कौन ले गया छीन हमारे, अधरों की मीठी मुस्काने? किसने हरण किया गान्धी का, कहाँ गयी इन्दिरा प्यारी? प्रजातन्त्र की नगरी की, क्यों आज दुखी जनता सारी? कौन राष्ट्र का हनन कर रहा, माता के अंग काट रहा? भारत माँ के मधुर रक्त को, कौन राक्षस चाट रहा? |
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शनिवार, 19 जून 2010
“कौन राक्षस चाट रहा?” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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बहुत ही सुंदर रचना शास्त्री जी और सामयिक भी और सटीक भी ।
जवाब देंहटाएंआरत का मतलब बताएं तो कृपा होगी
राष्ट्रीय जागरण की काव्यात्मक अभिव्यक्ति जो पुरानी रूढ़ियों से मुक्ति चाहता है। बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंइसे 20.06.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत सुंदर कविता आज के हालात पर धन्यवाद
जवाब देंहटाएंविचारणीय़ प्रश्न हैं?
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना, शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना, शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता आज के हालात पर
जवाब देंहटाएंसमसामयिक रचना...कितने सारे प्रश्न हैं मन में पर उत्तर ?
जवाब देंहटाएंबेहद प्रशंसनीय और सामयिक रचना।
जवाब देंहटाएं