सूचनाः- 17 जून से 19 जून तकलुधियाना में रहूँगा!21 जून को हीब्लॉगिस्तान में वापिस लौटूँगा!मेरे मोबाइल नम्बर हैं-9997996437, 9368499921, 9456383898चमक और दमक में, कहीं खो न जाना! कलम के मुसाफिर, कहीं सो न जाना! जलाना पड़ेगा तुझे, दीप जगमग, दिखाना पड़ेगा जगत को सही मग, तुझे सभ्यता की, अलख है जगाना!! कलम के मुसाफिर...................!! सिक्कों की खातिर कलम बेचना मत, कलम में छिपी है ज़माने की ताकत, भटके हुओं को सही पथ दिखाना! कलम के मुसाफिर...................!! झूठों की करना कभी मत हिमायत, अमानत में करना कभी मत ख़यानत, हकीकत से अपना न दामन बचाना! कलम के मुसाफिर...................!! |
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गुरुवार, 17 जून 2010
“कहीं सो न जाना!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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झूठों की करना कभी मत हिमायत,
जवाब देंहटाएंअमानत में करना कभी मत ख़यानत,
हकीकत से अपना न दामन बचाना!
कलम के मुसाफिर...................!!
बहुत खूब... मगर हम तो सोने चले शास्त्री जी !
झूठों की करना कभी मत हिमायत,
जवाब देंहटाएंअमानत में करना कभी मत ख़यानत,
हकीकत से अपना न दामन बचाना!
कलम के मुसाफिर...................!
बहुत सुन्दर प्रेरक गीत बधाई ।अप तो लुधियाना जाने वाले थी शायद।
प्रेरक कविता | अच्छी शिक्षा देती है |
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्दों के साथ दिल को छूते भाव बेहतरीन ।
जवाब देंहटाएंवाह...प्रेरणादायक बहुत ही सुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएंचमक और दमक में, कहीं खो न जाना!
जवाब देंहटाएंकलम के मुसाफिर, कहीं सो न जाना!
जलाना पड़ेगा, तुम्हें दीप जगमग,
दिखाना पड़ेगा, जग को सही मग,
इस जग से बेरूख, कहीं हो न जाना!
कलम के मुसाफिर..........!!
सिक्कों की खातिर कलम बेचना मत,
हार करके आखिर कलम फेंकना मत,
देख हालत जहाँ की, कहीं रो न जाना!
कलम के मुसाफिर..........!!
झूठों की करना, कभी मत हिमायत,
अमानत में करना, कभी मत ख़यानत,
भूलके भी ऐसा बीज, कहीं बो न जाना!
कलम के मुसाफिर............!!
भाई जी,
मेरी कोशिश देखें अच्छी लगी तो जरूर अपनाएं. धन्यबाद.
प्रेरक कविता |
जवाब देंहटाएंcomment from buzz...
जवाब देंहटाएंपद्म सिंह Padm Singh - मै यह निस्संदेह कहना चाहता हूँ कि पहले तो जिन भाई ने इसे संशोधित किया है ... तो अभी उन्हें रचना कर्म का कोई ज्ञान नहीं है ... अच्छी खासी रचना की ऐसी तैसी कर के डाल दी है ... अगर कुछ उन्हें गलत लग रहा था तो मूल रचनाकार से अनुरोध कर सकते थे ... ऐसा करना बेहूदगी से कम नहीं!
बहुत खूबसूरत रचना | किसी की कविता से खेलना बहुत तुच्छ कार्य लगा |ऐसे लोगों का प्रयास हास्य प्रद है |
जवाब देंहटाएंआशा
भाई प्रेमनारायण शर्मा जी!
जवाब देंहटाएंमाफ करना, बाहर गया था अभी लौटा हूँ!
आपकी बात मुझे बिल्कुल भी पसन्द नही आई!
यह तो सरासर अमानत में खयानत है!
2-4 शब्द बदलने से यह आपकी रचना कैसे हो जायेगी?
अब तो सन्देह भी होने लगा है कि आपने कहीं अपनी अन्य रचनाएँ भी इसी प्रकार तो नही लिखी हैं?
मेरा सुझाव है कि लिखना हो तो मौलिक लिखो!
मेरी रचना में क्यों हेर-फेर करते हो?