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कविता काफी पहले लिखी गयी, लेकिन आज भी खरी है..
जवाब देंहटाएंअच्छी महिलाएँ भी
जवाब देंहटाएंपुरुषों के अधीन हैं
कहने का स्वाधीन
मगर सब पराधीन हैं
बहुत सार्थक रचना..और बेहतरीन अनुवाद ...वैसे अच्छी महिलाएं क्या सभी महिलाएं पराधीन हैं ...
आपकी यह रचना कल मंगलवार १५-०६-२०१० को चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है ...
जवाब देंहटाएंbahut hee saarthak rachna hai gur ji mahaaraaj....
जवाब देंहटाएंsachchai ko darshaati rachna bahut achhi lagi...
आज भी ये उतनी ही सटीक जान पड़ती है ..क्या बदला है ..कुछ भी तो नहीं
जवाब देंहटाएंsundar rachna aur bhaav bhara anuvaad...badhiya sir...
जवाब देंहटाएंआँखों को शीतल हवा
जवाब देंहटाएंऔर बालों को सुन्दर बतलाया
और इस बतलाने के एवज़ में उसको पराधीन बनाया.
सुन्दर रचना .. बहुत सुन्दर अनुवाद
अच्छी रचना .. हिंदी में अनुवाद कर हमें पढवाने का शुक्रिया !!
जवाब देंहटाएंएक कमाल की रचना का
जवाब देंहटाएंअद्भुत अनुवाद
आपको साधुवाद।
सुन्दर रचना .. सुन्दर अनुवाद....
जवाब देंहटाएंमुझे तो आज घर-घर में पराधीन पुरुष ही दिखायी दे रहे हैं। ऐसा करे कि अपने परिचितों में से या ब्लाग पर ही सर्वे करा लिया जाए कि कौन महिला पराधीन है और कौन पुरुष।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!!
जवाब देंहटाएंkhubsurat anuwaaad!!!
जवाब देंहटाएंsarthak rachna!! mahilayon ki isthithi.......wahin ki wahin........yug badal raha hai, desh badal gaye, lekin Janani ka roop waisa hi .......:(
good, you introduced us to this great poet !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अनुवाद !!
जवाब देंहटाएंकुछ सत्य हर युग मे सटीक होते हैं और ये उनमे से ही है…………………बेह्तरीन अनुवाद्।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना .. सुन्दर अनुवाद....
जवाब देंहटाएंसत्य लिखा है इतने समय पहले भी .... सुंदर रचना के अनुवाद का शुक्रिया...
जवाब देंहटाएंकड़वी सच्चाई को तरूके से जबरदस्त सामने रखती कविता पर बधाई सवीकार करेंगे जी।
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