(१) अरे मुन्ना भाई नहीं-नहीं जी, अब तो मैं हूँ अन्नाभाई (२) शराब वही बोतल नई कैसी रही (३) रूप बदला है ऐब छिपाया है धोखा देने के लिए (४) गद्य लिखता हूँ लाइनों को तोड़ कर कविता बन जाती है (५) शब्द गौण हैं अर्थ मौन हैं इसीलिए श्रेष्ठ रचना है |
| "उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
लोकप्रिय पोस्ट
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
chand panktiyon me itna kuchh!
जवाब देंहटाएंवाह ! वाह! क्या बात है! छोटी सी सुन्दर पंक्तियों में आपने बहुत कुछ कह दिया! लाजवाब प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंNice post .
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत ही बढि़या प्रस्तुति ..आभार ।
जवाब देंहटाएंNice post .
जवाब देंहटाएंजय हो
जवाब देंहटाएंमै सबको लिखता देख के सोचा,
मै भी कवि बन जाउं
ati sundar
जवाब देंहटाएंbahut sachchi evam manoranjak lagi seepikaayen....aabhar.
जवाब देंहटाएंWAAH BAHUT UMDA
जवाब देंहटाएंसुन्दर सीपियाँ ! बहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर तारीफ के काबिल
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक और सुन्दर...
जवाब देंहटाएंdr.saheb samundar se nikali shipiya pasand aayi sadhuwad
जवाब देंहटाएंसिपिकाओं की धार
जवाब देंहटाएंनयी कविता पर मार
शब्द रहे गौण
अर्थ रहे मौन
श्रेष्ठ रचनाकार
हैं भला कौन ?
अच्छी प्रस्तुति
कल हलचल पर आपके पोस्ट की चर्चा है |कृपया अवश्य पधारें.....!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सीपियाँ. मोती भरे हैं इनमे
जवाब देंहटाएंअनमोल और सुंदर सीपियां.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति कल के तेताला का आकर्षण बनी है
तेताला पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
अवगत कराइयेगा ।
http://tetalaa.blogspot.com/
इन्हीं सीपियों ने अपने अंदर मोतियों को छुपाया है।
जवाब देंहटाएंहर क्षणिका कटाक्ष करती हुयी।
जवाब देंहटाएंगद्य लिखता हूँ
जवाब देंहटाएंलाइनों को तोड़ कर
कविता बन जाती है
-यही हो रहा है आजकल...सो ही यहाँ भी हुआ...मगर मारक रहा!!
बहुत बढ़िया,अनमोल कविता
जवाब देंहटाएंगद्य लिखता हूँ
जवाब देंहटाएंलाइनों को तोड़ कर
कविता बन जाती है........बढ़िया कही !!