था कभी ये 'रूप' ऐसा। हो गया है आज कैसा?? बालपन में खेल खेले। दूर रहते थे झमेले।। छा गई थी जब जवानी। शक्ल लगती थी सुहानी।। तब मिला इक मीत प्यारा। दे रहा था जो सहारा।। खुशनुमा उपवन हुआ था। धन्य तब जीवन हुआ था।। बढ़ी गई जब मोह-माया। तब बुढ़ापे ने सताया। जब हुई कमजोर काया। मौत का आया बुलावा।। चक्र है आवागमन का। जगत है जीवन-मरण का।। |
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रविवार, 5 फ़रवरी 2012
"हो गया क्यों 'रूप' ऐसा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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पूरी ज़िन्दगी की दास्ताँ बहुत खूबसूरती से बयाँ कर दी।
जवाब देंहटाएंपुष्पों के द्वारा जीवन के सच का वर्णन ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..
kalamdaan.blogspot.in
फूल के रूपक में जिंदगी का सच ब्यान कर दिया
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
यही जीवन की सच्चाई है..
जवाब देंहटाएंहर सफ़र इन नियत चक्रों से गुज़रता
जवाब देंहटाएंजीवन का दार्शनिक सच
चित्रों सरीखी ही सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंbahut sundar
जवाब देंहटाएंजब तलक सूरज जलेगा
जवाब देंहटाएंसिलसिला यूँ ही चलेगा.
अति सुंदर
kuch hi panktiyon me jeevan aakkhyati likh di sach hai vaqt badhta jata hai har cheej ka swaroop badalta jata hai.phoolon ki tasveer ne kavita aur bhi rochak bana di hai.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 06-02-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
पुष्पों के द्वारा जीवन के सच का वर्णन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति ,अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंनई रचना ...काव्यान्जलि ...: बोतल का दूध...
डराने का तरीका पसंद आया...बचपन से बुढ़ापे तक का सफ़र...फूलों के माध्यम से...
जवाब देंहटाएंबातों बातों में जीवन चक्र घुमा दिया।
जवाब देंहटाएंएक जन्मदिन गुज़रता है तो अक्सर ऐसे विचार घुमड़ते हैं मन में..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना..
सादर.
gulab ko sunder prateek roop me prayog kiya hai.
जवाब देंहटाएंअनामिका जी!
हटाएंरचना में गुलाब का नहीं गेंदे का सुमन लगाया है मैंने!
तौबा तौबा ये मौत की बात कहाँ से आगई ...अभी बहुत लंबी जिंदगी है
जवाब देंहटाएंचक्र है आवागमन का।
जवाब देंहटाएंजगत है जीवन-मरण का।।
अच्छाइयों की जैविक खाद और बुराइयों की खर पतवार हम यहीं छोड़ जातें हैं कर्म डोर से बंधे कूच कर जातें हैं ,खाली हाथ जाते हैं खाली हाथ आतें हैं .अलबत्ता जन्म के समय बच्चे की मुठ्ठी बंद होती है .तकदीर बंद होती है इस मुठ्ठी में . मुठ्ठी में जिसका निर्धारण अर्जित कर्म करतें हैं .
जब हुई कमजोर काया।
जवाब देंहटाएंमौत का आया बुलावा।।
चक्र है आवागमन का।
जगत है जीवन-मरण का।।
bilkul adbhud rachana ....aj kal aisi rachanayen kam hi dekhane ko milati hain ....badhai mayank ji.
जो रूप और शरीर आपका है ही नहीं
जवाब देंहटाएंतो मोह कैसा ? और आपकी आत्मा,
वह तो पल-पल सुन्दर होती जा रही
है फिर अफसोस कैसा ?
सुन्दर रचना,
सुन्दर प्रयास।
धन्यवाद।
आनन्द विश्वास
पहली दो पंक्तियों और चित्रों का तालमेल बहुत अच्छा है!
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