चाक-ए-दामन सी रहा अब भी हमारे गाँव में।। सभ्यता के ज़लज़लों से लड़ रहा है रात-दिन, रंज-ओ-ग़म को पी रहा अब भी हमारे गाँव में। मिल रही उसको तसल्ली देखकर परिवार को, इसलिए ही जी रहा अब भी हमारे गाँव में। जानता है ज़िन्दगी की हो रही अब साँझ है, हाड़ अपने धुन रहा अब भी हमारे गाँव में। “रूप” में ना नूर है, तेवर नहीं अब वो रहे, थान मखमल बुन रहा अब भी हमारे गाँव में। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
बुधवार, 22 फ़रवरी 2012
"अब भी हमारे गाँव में...." (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों स...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
जानता है ज़िन्दगी की हो रही अब साँझ है,
जवाब देंहटाएंहाड़ अपने धुन रहा अब भी हमारे गाँव में।
bahut achcha sher likha prakarti humesha pyaar lutati rahti hai.bahut achchi ghazal.
सुन्दर रचना - "ओल्ड इज गोल्ड"
जवाब देंहटाएं“रूप” में ना नूर है, तेवर नहीं अब वो रहे,
जवाब देंहटाएंथान मखमल बुन रहा अब भी हमारे गाँव में।
बहुत सुन्दर !
बहुत बढ़िया,बेहतरीन अनुपम अच्छी प्रस्तुति,.....
जवाब देंहटाएंMY NEW POST...काव्यान्जलि...आज के नेता...
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - आंखों पर हावी न होने पाए ब्लोगिंग - ब्लॉग बुलेटिन
जवाब देंहटाएंगाँव बहुत अब याद आता है..
जवाब देंहटाएंसुबह समीर जी की गजल पढ़ी और अब आप की.... आनंद ही आनंद...
जवाब देंहटाएंसुबह समीर जी की गजल और अब आप की. आनंद आ गया..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंहमारे गाँव का पेंड...हमारी जिंदगी का एक हिस्सा बन जाता है...
जवाब देंहटाएंथान मखमल बुन रहा अब भी हमारे गाँव में।
जवाब देंहटाएं..वाह!
अपने अंतरजाल पर, इक पीपल का पेड़ ।
जवाब देंहटाएंतोता-मैना बाज से, पक्षी जाते छेड़ ।
पक्षी जाते छेड़, बाज न फुदकी आती ।
उल्लू कौआ हंस, पपीहा कोयल गाती ।
पल-पल पीपल प्राण, वायु ना देता थमने ।
पाले बकरी गाय, गधे भी नीचे अपने ।
दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक
http://dineshkidillagi.blogspot.in
Purani dharohar ab akhiri sanse hi gin rahi hai
जवाब देंहटाएं“रूप” में ना नूर है, तेवर नहीं अब वो रहे,
जवाब देंहटाएंथान मखमल बुन रहा अब भी हमारे गाँव में ………………बहुत सुन्दर भाव संजोये हैं।
जानता है ज़िन्दगी की हो रही अब साँझ है,
जवाब देंहटाएंहाड़ अपने धुन रहा अब भी हमारे गाँव में।
वाह ...बहुत ही बढिया।
बहुत खूब ... गाँव की बात ही क्या है ... हर किसी को यादों के जंगल में खींच ले जाता है ...
जवाब देंहटाएंसुंदर गजल ...
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.com
चर्चा मंच-798:चर्चाकार-दिलबाग विर्क>
आनंदित कर दिया..लगता है साक्षात वृक्ष बोल रहा है..
जवाब देंहटाएंहमारे शहर में भी सड़क निर्माण के लिए कई वृक्षों को ,जो वृद्ध थे घने थे ..काटा गया ..
दिल निकलकर रह जाता है ..लगता है जैसे संपूर्ण मनुष्य का कत्ल किया गया है..
kalamdaan.blogspot.in
मिल रही उसको तसल्ली देखकर परिवार को,
जवाब देंहटाएंइसलिए ही जी रहा अब भी हमारे गाँव में।
बहुत खूब!!
पेड़ का मानवीकरण .अच्छी ग़ज़ल .रही बात रूप की सो नूर भी है तेवर भी रोज़ संवरते निखरते हैं .रूप भी है शाश्त्र भी परवाज़ भी आकाश भी .
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंGyan Darpan
..
देखने की बात सब कौन क्या है देखता ,नूर तो बाकी अभी भी है हमारे गाँव में ....बढ़िया बहुत सुन्दर शास्त्री जी ....कृपया यहाँ भी पधारें -
जवाब देंहटाएंसोमवार, 27 अगस्त २०१२/
ram ram bhai
अतिशय रीढ़ वक्रता (Scoliosis) का भी समाधान है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली में
http://veerubhai1947.blogspot.com/ उच्चारण -
अपने अंतरजाल पर, इक पीपल का पेड़ ।
तोता-मैना बाज से, पक्षी जाते छेड़ ।
पक्षी जाते छेड़, बाज न फुदकी आती ।
उल्लू कौआ हंस, पपीहा कोयल गाती ।
पल-पल पीपल प्राण, वायु ना देता थमने ।
पाले बकरी गाय, गधे भी नीचे अपने ।