चाक-ए-दामन सी रहा अब भी हमारे गाँव में।। सभ्यता के ज़लज़लों से लड़ रहा है रात-दिन, रंज-ओ-ग़म को पी रहा अब भी हमारे गाँव में। मिल रही उसको तसल्ली देखकर परिवार को, इसलिए ही जी रहा अब भी हमारे गाँव में। जानता है ज़िन्दगी की हो रही अब साँझ है, हाड़ अपने धुन रहा अब भी हमारे गाँव में। “रूप” में ना नूर है, तेवर नहीं अब वो रहे, थान मखमल बुन रहा अब भी हमारे गाँव में। |
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बुधवार, 22 फ़रवरी 2012
"अब भी हमारे गाँव में...." (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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जानता है ज़िन्दगी की हो रही अब साँझ है,
जवाब देंहटाएंहाड़ अपने धुन रहा अब भी हमारे गाँव में।
bahut achcha sher likha prakarti humesha pyaar lutati rahti hai.bahut achchi ghazal.
सुन्दर रचना - "ओल्ड इज गोल्ड"
जवाब देंहटाएं“रूप” में ना नूर है, तेवर नहीं अब वो रहे,
जवाब देंहटाएंथान मखमल बुन रहा अब भी हमारे गाँव में।
बहुत सुन्दर !
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - आंखों पर हावी न होने पाए ब्लोगिंग - ब्लॉग बुलेटिन
जवाब देंहटाएंगाँव बहुत अब याद आता है..
जवाब देंहटाएंसुबह समीर जी की गजल पढ़ी और अब आप की.... आनंद ही आनंद...
जवाब देंहटाएंसुबह समीर जी की गजल और अब आप की. आनंद आ गया..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंहमारे गाँव का पेंड...हमारी जिंदगी का एक हिस्सा बन जाता है...
जवाब देंहटाएंथान मखमल बुन रहा अब भी हमारे गाँव में।
जवाब देंहटाएं..वाह!
अपने अंतरजाल पर, इक पीपल का पेड़ ।
जवाब देंहटाएंतोता-मैना बाज से, पक्षी जाते छेड़ ।
पक्षी जाते छेड़, बाज न फुदकी आती ।
उल्लू कौआ हंस, पपीहा कोयल गाती ।
पल-पल पीपल प्राण, वायु ना देता थमने ।
पाले बकरी गाय, गधे भी नीचे अपने ।
दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक
http://dineshkidillagi.blogspot.in
Purani dharohar ab akhiri sanse hi gin rahi hai
जवाब देंहटाएं“रूप” में ना नूर है, तेवर नहीं अब वो रहे,
जवाब देंहटाएंथान मखमल बुन रहा अब भी हमारे गाँव में ………………बहुत सुन्दर भाव संजोये हैं।
जानता है ज़िन्दगी की हो रही अब साँझ है,
जवाब देंहटाएंहाड़ अपने धुन रहा अब भी हमारे गाँव में।
वाह ...बहुत ही बढिया।
बहुत खूब ... गाँव की बात ही क्या है ... हर किसी को यादों के जंगल में खींच ले जाता है ...
जवाब देंहटाएंसुंदर गजल ...
जवाब देंहटाएंआनंदित कर दिया..लगता है साक्षात वृक्ष बोल रहा है..
जवाब देंहटाएंहमारे शहर में भी सड़क निर्माण के लिए कई वृक्षों को ,जो वृद्ध थे घने थे ..काटा गया ..
दिल निकलकर रह जाता है ..लगता है जैसे संपूर्ण मनुष्य का कत्ल किया गया है..
kalamdaan.blogspot.in
मिल रही उसको तसल्ली देखकर परिवार को,
जवाब देंहटाएंइसलिए ही जी रहा अब भी हमारे गाँव में।
बहुत खूब!!
पेड़ का मानवीकरण .अच्छी ग़ज़ल .रही बात रूप की सो नूर भी है तेवर भी रोज़ संवरते निखरते हैं .रूप भी है शाश्त्र भी परवाज़ भी आकाश भी .
जवाब देंहटाएंदेखने की बात सब कौन क्या है देखता ,नूर तो बाकी अभी भी है हमारे गाँव में ....बढ़िया बहुत सुन्दर शास्त्री जी ....कृपया यहाँ भी पधारें -
जवाब देंहटाएंसोमवार, 27 अगस्त २०१२/
ram ram bhai
अतिशय रीढ़ वक्रता (Scoliosis) का भी समाधान है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली में
http://veerubhai1947.blogspot.com/ उच्चारण -
अपने अंतरजाल पर, इक पीपल का पेड़ ।
तोता-मैना बाज से, पक्षी जाते छेड़ ।
पक्षी जाते छेड़, बाज न फुदकी आती ।
उल्लू कौआ हंस, पपीहा कोयल गाती ।
पल-पल पीपल प्राण, वायु ना देता थमने ।
पाले बकरी गाय, गधे भी नीचे अपने ।