जो पगड़ी को बाँधते, वो होते सरदार।१। गांधी टोपी का कभी, भारत में था नाम। गद्दारों ने कर दिया, अब इसको बदनाम।२। मक्कारों ने हर लिया, जनता का आराम। बगुलों ने टोपी लगा, जीना किया हराम।३। खादी-टोपी ने किया, लोकतन्त्र में राज। चिकनी-चुपड़ी बात से, बहका लिया समाज।४। मत पाने के वास्ते, बोले मीठे बोल। धर्म-जाति के गरल को, रहे देश में घोल।५। |
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गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012
"टोपीदार दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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सत्य से रूबरू कराती शानदार प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंशुक्रवारीय चर्चामंच पर है यह उत्कृष्ट प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति ,
जवाब देंहटाएंMY NEW POST...मेरे छोटे से आँगन में...
टोपी प्रतीक है सम्मान की।
जवाब देंहटाएंचाहे टोपी हो या पगड़ी...
जवाब देंहटाएंभरे बाजार उछल रही है...
सार्थक रचना..
सादर.
वाह बहुत खूब ...टोपी सम्मान बना रहे
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, सार्थक एवं सटीक अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंसच कहते सुन्दर दोहे।
जवाब देंहटाएंसच्चाई से रूबरू कराते बढ़िया दोहे.
जवाब देंहटाएंसुन्दर, सामयिक अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सटीक प्रस्तुति। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंभारत की क्षितिज पर एक नया टोपी वाला आया है
जवाब देंहटाएंगाँधी टोपी बेचने वालों के दिलों में खौफ भर आया है...
गाँधी टोपी कभी देश के आवाम की आवाज़ थी...गद्दारों ने इसे बदनाम कर दिया...खूबसूरत दोहे...
sarthak post hae aabhar.
जवाब देंहटाएंवेष का ही महत्त्व है कि लुटेरे भी भगवा धारण करने पर पूजे जाते हैं.
जवाब देंहटाएंmera rang de basanti chola!!
जवाब देंहटाएंबढिया रचना।
जवाब देंहटाएं