कोमलता अपनाने वाले, गीत प्रणय के गाते हैं। काँटों में मुस्काने वाले, सबसे ज्यादा भाते हैं।। सीधे-सादे, भोले-भाले, रखते हैं अन्दाज़ निराले, जो चंचल-नटखट होते हैं, मन के होते हैं मतवाले. हँसते हुए प्रसून देखकर, दौड़े-दौड़े आते हैं। काँटों में मुस्काने वाले, सबसे ज्यादा भाते हैं।। निर्झर शान्त नही हैं रहते, प्रबल वेग से ये हैं बहते, पाषाणों के अवरोधों को, कदम-कदम पर ही हैं सहते, साथ लिए जल की धारा को, आगे को बढ़ जाते हैं। काँटों में मुस्काने वाले, सबसे ज्यादा भाते हैं।। नहीं राज़ को कभी छिपाते, कोरी बातें नहीं बनाते, जो सच्चे प्रेमी होते हैं प्रेमदिवस वो रोज मनाते, बगिया को अपनी खुशबू से, प्रतिदिन ही महकाते हैं। काँटों में मुस्काने वाले, सबसे ज्यादा भाते हैं।। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
सोमवार, 13 फ़रवरी 2012
"गीत प्रणय के गाते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
प्रेम दिवस मन का प्रश्न है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...मनभावन...
जवाब देंहटाएंसादर.
नहीं राज़ को कभी छिपाते,
जवाब देंहटाएंकोरी बातें नहीं बनाते,
जो सच्चे प्रेमी होते हैं
प्रेमदिवस वो रोज मनाते,
बगिया को अपनी खुशबू से,
प्रतिदिन ही महकाते हैं।
काँटों में मुस्काने वाले,
सबसे ज्यादा भाते हैं।।
बहुत सुन्दर भाव संजोये हैं।
bhole bhale mann wale sab ko bhate hain..utaam rachna....सीधे-सादे, भोले-भाले,
जवाब देंहटाएंरखते हैं अन्दाज़ निराले,
जो चंचल-नटखट होते हैं,
मन के होते हैं मतवाले.
हँसते हुए प्रसून देखकर,
दौड़े-दौड़े आते हैं।
bahut sundar bhaav sachche premi ke liye to roj hi premdivas hai.
जवाब देंहटाएंवाकई ..हमें पश्चिमी सभ्यता अपनाने की ज़रुरत नहीं ..अपने भारत में तो वसंत स्वयं ही प्रेम और समर्पण का प्रतीक है..
जवाब देंहटाएंkalamdaan.blogspot.in
काँटों में मुसकाने वाले,
जवाब देंहटाएंसबसे ज्यादा भाते हैं...
वाह बहुत बढ़िया सार्थक गीत ...
मनभावन लयबद्ध कविता...
जवाब देंहटाएंकाँटों में मुस्काने वाले,
जवाब देंहटाएंसबसे ज्यादा भाते हैं।।
सचमुच....
सुन्दर गीत सर.
सादर.
जो सच्चे प्रेमी होते हैं
जवाब देंहटाएंप्रेमदिवस वो रोज मनाते,
....बिलकुल सच...बहुत सुंदर प्रस्तुति...
बहुत सुन्दर |
जवाब देंहटाएंबधाई ||
सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर!
जवाब देंहटाएंतभी तो कांटों में गुलाब खिलते हैं :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर,
जवाब देंहटाएंकाँटों में मुस्काने वाले,
सबसे ज्यादा भाते हैं। बधाई|
जो पीड़ा झेलेगा, वही आनन्द उठायेगा..
जवाब देंहटाएं//काँटों में मुस्काने वाले,
जवाब देंहटाएंसबसे ज्यादा भाते हैं।।
do hi panktiyo mein saar bhar diya sirji ..
bahut sundar rachna..
aapki rachnaaye main humesha zor-zor se gaane padhta hun.. bahut mazaa aata hai :D:D
palchhin-aditya.blogspot.in
मुझे तो इसका शीर्षक बहुत भाया (गीत प्रणय के गाते हैं .. रूप चंद्र शास्त्री)
जवाब देंहटाएंक्या इसे आपने भाभी जी को दिखाया
वैसे मैंने इस कविता को अपने दिल में अपना लिया है
क्योंकि आपने
आपने विषय की मूलभूत अंतर्वस्तु को
उसकी समूची विलक्षणता के साथ बोधगम्य बना दिया है।
जय हो प्रेम कर्ताओं की...
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
जवाब देंहटाएंजो सच्चे प्रेमी होते हैं
जवाब देंहटाएंप्रेमदिवस वो रोज मनाते,
बगिया को अपनी खुशबू से,
प्रतिदिन ही महकाते हैं।
sundar bhav bhari rachna ....
उम्दा अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव हैं रचना के ।
जवाब देंहटाएंमनभावन कविता
जवाब देंहटाएंवाह |||
जवाब देंहटाएंइस रचना की बात ही निराली है,,,,
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति है....:-)....
बहुत सुन्दर.....
जवाब देंहटाएं