देता है ऋतुराज निमन्त्रण, तन-मन का शृंगार करो। पतझड़ की मारी बगिया में, फिर से नवल निखार भरो।। नये पंख पक्षी पाते हैं, नवपल्लव वृक्षों में आते, आँगन-उपवन, तन और मन भी, वासन्ती होकर मुस्काते, स्नेह और श्रद्धा-आशा के उर के मन्दिर में दीप धरो। पतझड़ की मारी बगिया में, फिर से नवल निखार भरो।। मन के हारे हार और मन के जीते ही जीत यहाँ, नजर उठा करके तो देखो, बुला रही है प्रीत यहाँ, उड़ने को उन्मुक्त गगन है, पहले स्वयं विकार हरो। पतझड़ की मारी बगिया में, फिर से नवल निखार भरो।। धर्म-अर्थ और काम-मोक्ष के, लिए मिला यह जीवन है, मैल हटाओ, द्वेश मिटाओ, निर्मल तन में निर्मल मन है, दीन-दुखी को गले लगाओ, दुर्बल से मत घृणा करो। पतझड़ की मारी बगिया में, फिर से नवल निखार भरो।। |
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बुधवार, 1 फ़रवरी 2012
"तन-मन का शृंगार करो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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वाह बेहद खूबसूरत रचना ………आनन्दित कर दिया।
जवाब देंहटाएंबसंती बयार सी झूमती गाती मधुर रचना...
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर रचना | मन आह्लादित हो उठा शास्त्री जी |
जवाब देंहटाएंआभार |
बहुत सुंदर रचना /बहुत सुंदर शब्दों में लिखी वसंत ऋतू पर लिखी मनभावन रचना /बधाई आपको /
जवाब देंहटाएंवाह....बहुत सुंदर मनभावन बासंती भाव लिए खुबशुरत रचना,....
जवाब देंहटाएंबहार स्वागत का सजीव चित्रण है।
जवाब देंहटाएंधर्म-अर्थ और काम-मोक्ष के,
लिए मिला यह जीवन है,
मैल हटाओ, द्वेश मिटाओ,
निर्मल तन में निर्मल मन है,
दीन-दुखी को गले लगाओ,
दुर्बल से मत घृणा करो।
पतझड़ की मारी बगिया में,
फिर से नवल निखार भरो।।
बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंपतझड़ की मारी बगिया में,
जवाब देंहटाएंफिर से नवल निखार भरो।।......वहा: बहुत ही खूबसूरत रचना
मन के हारे हार और
जवाब देंहटाएंमन के जीते ही जीत यहाँ,
नजर उठा करके तो देखो,
बुला रही है प्रीत यहाँ,
उड़ने को उन्मुक्त गगन है,
पहले स्वयं विकार हरो।
....बहुत सुन्दर
सादर.
सुन्दर गीत सर...
जवाब देंहटाएंसादर...
मन के हारे हार और
जवाब देंहटाएंमन के जीते ही जीत यहाँ,
नजर उठा करके तो देखो,
बुला रही है प्रीत यहाँ,
उड़ने को उन्मुक्त गगन है,
पहले स्वयं विकार हरो।
पतझड़ की मारी बगिया में,
फिर से नवल निखार भरो।।.....
हर बार की तरह ...बेजोड ...बहुत खूब
धर्म-अर्थ और काम-मोक्ष के,
जवाब देंहटाएंलिए मिला यह जीवन है,
मैल हटाओ, द्वेश मिटाओ,
निर्मल तन में निर्मल मन है,
लो फिर बसंत आई.....
सुन्दर रचना...
bahut khub sir.........basanti badhai sweekar karen..
जवाब देंहटाएंवैचारिक ताजगी लिए हुए रचना विलक्षण है।
जवाब देंहटाएंसार्थक सकारात्मक रचना .जीवन के प्रति अनुराग और आदर से सिंचित .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सन्देश है..
जवाब देंहटाएंउत्साह का संचार करती सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना,लाजबाब प्रस्तुतीकरण..
जवाब देंहटाएंNEW POST...40,वीं वैवाहिक वर्षगाँठ-पर...
मैल हटाओ, द्वेश मिटाओ,
जवाब देंहटाएंनिर्मल तन में निर्मल मन है,
प्रेरक आह्वान !
ऋतुराज का बेहतरीन स्वागत.......:)
जवाब देंहटाएंkhoobsurat sandesh deti hui behtreen prastuti.rituraaj ka swagat hai.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंएक ब्लॉग सबका '
हां,सत्कर्म और आशावादिता में ही जीवन है।
जवाब देंहटाएंदीन-दुखी को गले लगाओ,
जवाब देंहटाएंदुर्बल से मत घृणा करो।
पतझड़ की मारी बगिया में,
फिर से नवल निखार भरो।।
sundar shabd rachna
वाह बेहद खूबसूरत रचना ………
जवाब देंहटाएंBasant rang mein rangi sabko bhaichare ka mantra deti sundar prastuti hetu aabhar!
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.in/2012/02/777.html
चर्चा मंच-777-:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
एक नयापन भर जाने को,
जवाब देंहटाएंजीवन जीभर मदमाने को..
तन-मन का शृंगार करो।वो चहरे पर झलकेगा
जवाब देंहटाएं