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झूठे-वादे, कोरे-नारे, झूठा
सब अपना-पन है।
तारों
की महफिल में, खद्योतों का निर्वाचन है।
रंग-बिरंगे
झण्डे फहराने की, सब में होड़ लगी है,
नेताओं के तन में खुजली, मन में कोढ़ लगी है,
रूखा-सूखा
मत का भूखा, बिन पानी का ये घन है।
तारों
की महफिल में, खद्योतों का निर्वाचन है।।
पाँच
साल जम कर लूटा, अब लुट जाने के दिन हैं,
वोट
बैंक की खातिर, जूतों से पिट जाने के दिन हैं,
कुर्सी
की खातिर ये करता, पूजा, हवन, भजन
है।
तारों
की महफिल में, खद्योतों का निर्वाचन है।
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आये भिक्षुक पुनः रिझाने
जवाब देंहटाएंजागरुकता जरूरी है
जवाब देंहटाएंबढिया
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (13 -4-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
सही चित्र खींचा है-
जवाब देंहटाएंझरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (ज)स्वर्ण-कीट)(१) मैली चमक
हाथ में जुगनू पकड़ कर, मलिन हुआ ‘स्पर्श’ |
‘लोभ की मैली चमक’ से, उन्हें हुआ है हर्ष ||
bade satir khiadi hai,badi katil nigahe hai,samhal kar ham kaha jaye,jagah jahanuum me bhi n kahi hai
जवाब देंहटाएंजनता के चित में अज्ञानता इस प्रकार आच्छादित है कि
जवाब देंहटाएंनेता-मंत्री, जनता का सर्वस ही क्यों न लूट लें वो उन्हें वोट देंगे
यदि नेता-मंत्री जनता के हाथ भी काट ले तो वे पैर से वोट देंगे
यदि ये नेता पैर भी काट ले तो वो नाक से वोट देंगे.....
रूखा-सूखा मत का भूखा, बिन पानी का ये घन है।
जवाब देंहटाएंतारों की महफिल में, खद्योतों का निर्वाचन है।।
Bhaut shaandaar !
बिलकुल ठीक है, खद्योतों का ही जमाना है।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा गुरु जी अब सब समस्याओं का समाधान करने का दिखावा किया जाएगा
जवाब देंहटाएं''नवरात्र ''भाग 1
सत्य वचन
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया कटाक्ष के तीक्ष्ण प्रहार करती जनता को जागरूक करती पोस्ट हार्दिक बधाई आपको
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