रास हमको आ रहे हैं, अब मुखौटे मोम के
कुर्सियों को भा रहे
हैं, अब मुखौटे मोम के
सुबह को कुछ और
कहते, शाम को कुछ और हैं
देश को तो खा रहे
हैं, अब मुखौटे मोम के
खौफ क्यूँ खायें
भला, कानून का बहरूपिये
न्याय करने जा रहे
हैं, अब मुखौटे मोम के
राम से रहमान को
लड़वा रहे हैं शान से
चमन को लुटवा रहे
हैं, अब मुखौटे मोम के
ये कभी तो कृष्ण
दिखते, कंस दिखते हैं कभी
ज़ुल्म सब पर ढा रहे हैं, अब मुखौटे मोम के
आदमी का “रूप” धर कर, भेड़िए काज़ी बने
माल घर में ला रहे
हैं, अब मुखौटे मोम के
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मंगलवार, 9 अप्रैल 2013
"ग़ज़ल-मुखौटे मोम के" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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सच्चाई का दर्पण दिखाती गजल सुन्दर लगी.....
जवाब देंहटाएं"मुखौटा" बच्चों के लिये एक खेल का साधन परन्तु जैसे जैसे आयु बढती है और जीवन में व्यवहारिकता आने लगती है वैसे वैसे मनुष्य का चरित्र सहज न रह कर मुखौटों का मोहताज हो जाता है.सार्थक संदेस देती बेहतरीन रचना.
जवाब देंहटाएंबढ़िया है गुरुवर-
जवाब देंहटाएंसार्थक सटीक सन्देश देती सुंदर गजल !!!
जवाब देंहटाएंRECENT POST: जुल्म
जवाब देंहटाएंनेतायों के चरित्र चित्रण करती गजल - उम्दा प्रस्तुति !
LATEST POSTसपना और तुम
बहुत सारे मुखौटे हैं आदमी के पास.
जवाब देंहटाएंसच आदमी के आस मुखौटों की कोई कमी नहीं ....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
ताउम्र इन्ही मुखोटों के सहारे तो जीता है इंसान.....
जवाब देंहटाएंअसली चेहरा तो पता नहीं कितने मुखोटों के पीछे छिपा रह जाता है....
बहुत सुंदर रचना सर.....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार (10-04-2013) के "साहित्य खजाना" (चर्चा मंच-1210) पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
सूचनार्थ...सादर!
वर्तमान परिस्थितियों का सार्थक चित्रण.
जवाब देंहटाएंवाकई क्या लिखा है आपने, दिल से आपको मुबारक बाद और सलाम।
जवाब देंहटाएंसत्य वचन
जवाब देंहटाएंbahut sunder mayank daa
जवाब देंहटाएंगर्मी होगी,
जवाब देंहटाएंपिघल जायेंगे,
यही मुखौटे मोम के।