छलक जाते हैं अब आँसू, गजल को गुनगुनाने में। नही है चैन और आराम, इस जालिम जमाने में।। नदी-तालाब खुद प्यासे, चमन में घुट रही साँसें, प्रभू के नाम पर योगी, लगे खाने-कमाने में। नही है चैन और आराम, इस जालिम जमाने में।। हुए बेडौल तन, चादर सिमट कर हो गई छोटी, शजर मशगूल हैं अपने फलों को आज खाने में। नही है चैन और आराम, इस जालिम जमाने में।। दरकते जा रहे अब तो, हमारी नींव के पत्थर, चिरागों ने लगाई आग, खुद ही आशियाने में। नही है चैन और आराम, इस जालिम जमाने में।। लगे हैं पुण्य पर पहरे, दया के बन्द दरवाजे, दुआएँ कैद हैं अब तो, गुनाहों की दुकानों में। नही है चैन और आराम, इस जालिम जमाने में।। |
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शनिवार, 4 सितंबर 2010
“.. …ज़माने में…!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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जवाब देंहटाएंआज की वस्तविकता को दर्शाती ये ग़ज़ल बहुत ही सुंदर है।
जवाब देंहटाएंफ़ुरसत में .. कुल्हड़ की चाय, “मनोज” पर, ... आमंत्रित हैं!
नदी-तालाब खुद प्यासे, चमन में घुट रही साँसें,
जवाब देंहटाएंप्रभू के नाम पर योगी, लगे खाने-कमाने में।
आज का कटु सत्य, यही सच्चाई है , बहुत खूब शास्त्री जी !
छलक जाते हैं अब आँसू, गजल को गुनगुनाने में।
जवाब देंहटाएंनही है चैन और आराम, इस जालिम जमाने में।।
ना हँसने देगा , ना रोने देगा
ना जीने देगा , ना मरने देगा
यही ज़माने का दस्तूर है
इसमे ना तेरा कसूर
ना मेरा कसूर है
बेहद सुन्दर और सच को उजागर करती रचना।
आज के कटु सत्य को बताती सुन्दर रचना ..
जवाब देंहटाएंहकीकत को बयान करती रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम
अभिनव गीत..........
जवाब देंहटाएंवाह
वाह
बहुत ही सुन्दर और सार्थक सन्देश
bahut hi sundar hai...
जवाब देंहटाएंA Silent Silence : Mout humse maang rahi zindgi..(मौत हमसे मांग रही जिंदगी..)
Banned Area News : Shyam Benegal Signs Aishwarya For His Next Film
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर,भावपूर्ण और सामयिक रचना....धन्यवाद शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण कविता के लिए बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
बेहतरीन ग़ज़ल आज के ज़माने का सत्य उजागर करती
जवाब देंहटाएं