आषाढ़ से आकाश अब तक रो रहा है।बादलों को इस बरस क्या हो रहा है?आज पानी बन गया जंजाल है,भूख से पंछी हुए बेहाल हैं,रश्मियों को सूर्य अपनी खो रहा है।बादलों को इस बरस क्या हो रहा है?कब तलक नौका चलाएँ मेह में,भर गया पानी गली और गेह में,इन्द्र जल-कल खोल बेसुध सो रहा है।बादलों को इस बरस क्या हो रहा है?बिन चुगे दाना गगन में उड़ चले,घोंसलों की ओर पंछी मुड़ चले,दिन-दुपहरी दिवस तम को ढो रहा है।बादलों को इस बरस क्या हो रहा है?धान खेतों में लरजकर पक गया है,घन गरजकर और बरसकर थक गया है,किन्तु क्यों नगराज छागल ढो रहा है?बादलों को इस बरस क्या हो रहा है?देखकर अतिवृष्टि क्यों हैरान इतना हो रहा,पुण्य सलिला में निरन्तर पाप अपने धो रहा,उग रही वैसी फसल जैसी धरा में बो रहा है।बादलों को इस बरस क्या हो रहा है? |
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रविवार, 19 सितंबर 2010
“आसमान के आँसू” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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बहुत सुंदर भाव युक्त कविता
जवाब देंहटाएंसुंदर भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत सशक्त कविता. सच्चे सीधे भाव.गंभीर विषय. सच कह रहें हैं आप "बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से खाएं "
जवाब देंहटाएंदेखकर अतिवृष्टि क्यों हैरान इतना हो रहा,
जवाब देंहटाएंपुण्य सलिला में निरन्तर पाप अपने धो रहा,
उग रही वैसी फसल जैसी धरा में बो रहा है।
बादलों को इस बरस क्या हो रहा है?
बहुत सुंदर कविता...आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आई, अच्छा लगा....
सही कहा शास्त्री जी, यहां भी आज इन्द्र देव कौमन वेल्थ पर रात से ही रो रहे है लगातार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना! बहुत बढ़िया लगा!
जवाब देंहटाएंउग रही वैसी फसल जैसी धरा में बो रहा है
जवाब देंहटाएंसही कहा ...प्रकृति स्वयं ही संतुलन करती है लेकिन विपदाएं तो आही जाती हैं ...
सुन्दर अभिव्यक्ति ..गंभीर चिंतन
bahut sundar!
जवाब देंहटाएंभई वाह बहुत बढ़िया लिखा है .... साथ में चित्र भी बढ़िया है ...
जवाब देंहटाएंइसे भी पढ़कर कुछ कहे :-
आपने भी कभी तो जीवन में बनाये होंगे नियम ??
अतिवृष्टि और अनावृष्टि दोनों ही स्थितियां भयावह होती हैं....
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना है....
regards,
शास्त्री जी की लेखनी चलेगी तो कोई उत्तम कविता की सृजना ही होगी.........
जवाब देंहटाएंधन्य हो !
अति तो किसी भी चीज की ठीक नहीं होती। चाहे अमृत ही क्यों ना हो।
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत कविता है......
जवाब देंहटाएंशाश्त्री जी आप तो गजबे करते हो. हर बात पर कविता तैयार रहती है आपकी लेखनी पर. बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
नमस्कार,
जवाब देंहटाएंजन्मदिन की शुभकामनायें हम तक प्रेम, स्नेह में लिपट पर पहुँचीं.
शुभकामनायें हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा देतीं हैं.
आभार
आपने तो पूरी तस्वीर ही खींच कर रख दी है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
काव्य के हेतु (कारण अथवा साधन), परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
बादलों ने रूप कभी नहीं रखा, रखते तो जान पाते उनके बारे में।
जवाब देंहटाएंबादलों की बदचलनी का
जवाब देंहटाएंये अजीब दौर है।
अति वृष्टि पर आपकी
टिप्पणी काबिले गौर है।
प्रभावकारी अभिव्यक्ति के लिए बधाई।
-डॉ० डंडा लखनवी
बहुत सशक्त लेखन है आपका.
जवाब देंहटाएंबधाई.
वास्तव ही में इस बरस न जाने क्या हो रहा है.
जवाब देंहटाएंसुंदर भावो को उकेरा है आपने ..........बढ़िया
जवाब देंहटाएंयह कविता पढ़कर प्रसन्न मेरा मन हो रहा है!
जवाब देंहटाएंबहुत भावयुक्त रचना .. पर अब बारिश समाप्ति की ओर है .. आप सबों को 24 तक ही झेलना है !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव ,अभिव्यत्ति और चित्र |
जवाब देंहटाएंबधाई
आशा
सचमुच इस बार तो
जवाब देंहटाएंपता ही नही चल पा रहा है कि
बादलों को क्या हो गया है!
बहुत ही सुन्दर भावमय प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसही बखान किया है .
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता और सुन्दर प्रस्तुति.. सच्चे भाव... गंभीर विषय...
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