विदा हुई बरसात, महीना अब असौज का आया। जल्दी ढलने लगा सूर्य, जाड़े ने शीश उठाया।। श्राद्ध गये, नवरात्र आ गये, मंचन करते, पात्र भा गये, रामचन्द्र की लीलाओं ने, सबका मन भरमाया। जल्दी ढलने लगा सूर्य, जाड़े ने शीश उठाया।। विजयादशमी आने वाली, दस्तक देने लगी दिवाली, खेत और खलिहानों ने, कंचन सा रूप दिखाया। जल्दी ढलने लगा सूर्य, जाड़े ने शीश उठाया।। मूँगफली के होले भाये, हरे सिंघाड़े बिकने आये, नया-नया गुड़ खाने को, अब मेरा मन ललचाया। जल्दी ढलने लगा सूर्य, जाड़े ने शीश उठाया।। |
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बुधवार, 29 सितंबर 2010
“विदा हुई बरसात” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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वाह वाह्……………मौसम के बदलाव को बहुत सुन्दरता से बाँधा है………………एक बहुत ही सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंकविता करके आपने खूब मौसम का मिजाज बताया,
जवाब देंहटाएंहमने भी थोडा चखा जायका , आपके माद्यम से खाया,
यूँ भी कहते है, की जब जाड़ा भी आया,
सूता सबने खूब,
की सेहत बनाने का मौसम आया,
लिखते रहिये ...
मौसम के बदलाव पर अच्छा लिखा है !!
जवाब देंहटाएंअपनी संस्कृति और मौसम के बदलाव को बाखूबी लिखा है ....
जवाब देंहटाएंऋतु परिवर्तन को बखूबी बाँधा है
जवाब देंहटाएंसुन्दर
वाह ! बहुत खूब लिखा है आपने! बदलते हुए मौसम को बड़े ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है आपने!
जवाब देंहटाएंअब तो जल्दी ही नया गुड़ मँगाना पड़ेगा।
जवाब देंहटाएंवाह वाह , शास्त्री जी । इस मौसमी रचना ने तो मंत्रमुग्ध कर दिया । बहुत बढ़िया ।
जवाब देंहटाएंहां अब तो श्राद्ध पक्ष के बाद में नये गुड की तैयारी ही है, बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम
बहुत सुंदर विदाई दी आप ने धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंइन दिनो हम इसी बात का अनुभव कर रहे हैं जिन्हे आपने कविता का रूप दिया है ।
जवाब देंहटाएंबदलते मौसम पर अच्छी रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता!
जवाब देंहटाएंमौसम का बदलाव बहुत कुछ बदल देता है...सुन्दर प्रस्तुति...बधाई.
जवाब देंहटाएंमौसम का बदलाव वाह !!!बहुत सुन्दर कविता!
जवाब देंहटाएंआपकी रचना ने सर्दियों का आगाज़ कर दिया ...बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपने खूब मौसम का मिजाज बताया...
जवाब देंहटाएं"विजयादशमी आने वाली,
दस्तक देने लगी दिवाली,
खेत और खलिहानों ने, कंचन सा रूप दिखाया।
जल्दी ढलने लगा सूर्य, जाड़े ने शीश उठाया।।"
मौसम के बदलाव को बहुत सुन्दरता से बाँधा है…बहुत ही सुन्दर रचना।
बदलता मौसम और आने वाले त्यौहार सबके सुंदर सलोने रूप दिखा दिये आपने । हरे सिंघाडे खाने को मन ललचा उठा पर अब तो दिल्ली जाकर ही मिलेंगे । सुंदर रचना ।
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