सत्ता के रास्तों से, वो दूर हो गये हैं। सुख के हसीन सपने, सब चूर हो गये हैं।। अब ठाठ-बाट सारे, सब हो गये किनारे, मशहूर थे कभी जो, मजबूर हो गये हैं। सुख के हसीन सपने, सब चूर हो गये हैं।। लगते थे जो गरल से, अब हो गये सरल से, जागीरदार भी अब, मजदूर हो गये हैं। सुख के हसीन सपने, सब चूर हो गये हैं।। छल-छद्म के बहाने, जग को लगे डराने, सच्चाइयों के आगे, बेनूर हो गये हैं। सुख के हसीन सपने, सब चूर हो गये हैं।। |
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शुक्रवार, 24 सितंबर 2010
“समय-चक्र” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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जवाब देंहटाएंसमय किसी को नहीं बख्शता ...अच्छी रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया गीत...........
जवाब देंहटाएंप्रसन्न कर दिया शास्त्री जी !
बहुत सुन्दर रचना शास्त्री जी, मैं गुनगुना रहा हूँ ;
जवाब देंहटाएंराम चन्द्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आयेगा
हंस चुंगेगा दाना तिनका, कौवा मोती खायेगा ......
छल-छद्म के बहाने,
जवाब देंहटाएंजग को लगे डराने,
सच्चाइयों के आगे,
बेनूर हो गये हैं।
सुख के हसीन सपने,
सब चूर हो गये हैं।।
अच्छी रचना है ........
कृपया इसे भी पढ़े :-
क्या आप के बेटे के पास भी है सच्चे दोस्त ????
लगते थे जो गरल से,
जवाब देंहटाएंअब हो गये सरल से,
जागीरदार भी अब,
मजदूर हो गये हैं।
सुख के हसीन सपने,
सब चूर हो गये हैं।।
सारा सच उजागर कर दिया……………एक बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।
sach ujaagar karti khoobsurat rachnaa!!
जवाब देंहटाएंसटीक रचना.
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना ...
जवाब देंहटाएंसुंदर अति सुंदर.
जवाब देंहटाएंरामराम.
अति सुंदर जी, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंशायद इसी को कहते हैं समय की बात....... जो किसी के साथ भी हो सकता है...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना
बेहतरीन!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत सही लिखा है "लगते थे जो गरल से ,
जवाब देंहटाएंअब हो गए सरल हैं "
बधाई
आशा
छल-छद्म के बहाने,
जवाब देंहटाएंजग को लगे डराने,
सच्चाइयों के आगे,
बेनूर हो गये हैं।
बिल्कुल सही लिखा है आपने! बहुत सुन्दर और सठिक रचना !
परिवर्तन की सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सार्थक भाव लिए रचना...बधाई.
जवाब देंहटाएं______________
'शब्द-शिखर'- 21 वीं सदी की बेटी.
बहुत बढिया !!
जवाब देंहटाएं