भार सीने पे रख आदमी जी रहा। गम के टुकड़े निगल, अश्क को पी रहा।। बाढ़ ही खेत खाने लगी आजकल, चाँदनी तन जलाने लगी आजकल, शस्त्र से शास्त्र का है कफन सीं रहा। गम के टुकड़े निगल, अश्क को पी रहा।। प्यार करना है अब पाप से कम नहीं, पेट भरना है अब जाप से कम नहीं, दुनियादारी में अब तो दमन हो रहा। गम के टुकड़े निगल, अश्क को पी रहा।। पानी बिकने लगा दूध के भाव पर, कौन मरहम लगायेगा अब घाव पर, तेल भी ना रहा और न अब घी रहा। गम के टुकड़े निगल, अश्क को पी रहा।। |
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मंगलवार, 7 सितंबर 2010
"आदमी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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"भार सीने पे रख आदमी जी रहा।गम के टुकड़े निगल, अश्क को पी रहा।।"
जवाब देंहटाएंबहुत खूब दर्शाया है आपने आज के हालातो को ..... बेहद उम्दा रचना !
बहुत सुन्दर रचना .....सच्चाई के बहुत करीब है !
जवाब देंहटाएंआभार
वाह मयंक जी
जवाब देंहटाएंक्या खूबसूरत लिखा है ...
तेल भी ना रहा और न अब घी रहा।
गम के टुकड़े निगल, अश्क को पी रहा।।
........आभार
बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं भावों को यही सच है आज का उम्दा रचना आभार
जवाब देंहटाएंवाह वाह
जवाब देंहटाएंपानी बिकने लगा दूध के भाव पर,
कौन मरहम लगायेगा अब घाव पर,
बहुत ख़ूब !
सच है, अधिकांश जीवन ऐसे ही हो गये हैं।
जवाब देंहटाएंसटीक है जी आप की यह रचना, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव!
जवाब देंहटाएंबहुत प्रेरणा मिलती है आपकी कविताओं से ...
जवाब देंहटाएंkhoobsoorati se labrez hai aapki ye kavita!
जवाब देंहटाएंबाढ़ ही खेत खाने लगी आजकल,चाँदनी तन जलाने लगी आजकल,शस्त्र से शास्त्र का है कफन सीं रहा।गम के टुकड़े निगल, अश्क को पी रहा।।
जवाब देंहटाएंसच कहा……………हालात का सही आकलन कर दिया…………………बेहद उम्दा प्रस्तुति।
आपने सही मुद्दे को लेकर बहुत बढ़िया और सठिक लिखा है! उम्दा प्रस्तुती !
जवाब देंहटाएंsach ko bakhoobi bayaan karti sundar rachna!
जवाब देंहटाएंआज के हालात का सही आंकलन करती रचना ...बहुत बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं