भार सीने पे रख आदमी जी रहा। गम के टुकड़े निगल, अश्क को पी रहा।। बाढ़ ही खेत खाने लगी आजकल, चाँदनी तन जलाने लगी आजकल, शस्त्र से शास्त्र का है कफन सीं रहा। गम के टुकड़े निगल, अश्क को पी रहा।। प्यार करना है अब पाप से कम नहीं, पेट भरना है अब जाप से कम नहीं, दुनियादारी में अब तो दमन हो रहा। गम के टुकड़े निगल, अश्क को पी रहा।। पानी बिकने लगा दूध के भाव पर, कौन मरहम लगायेगा अब घाव पर, तेल भी ना रहा और न अब घी रहा। गम के टुकड़े निगल, अश्क को पी रहा।। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
मंगलवार, 7 सितंबर 2010
"आदमी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
"भार सीने पे रख आदमी जी रहा।गम के टुकड़े निगल, अश्क को पी रहा।।"
जवाब देंहटाएंबहुत खूब दर्शाया है आपने आज के हालातो को ..... बेहद उम्दा रचना !
बहुत सुन्दर रचना .....सच्चाई के बहुत करीब है !
जवाब देंहटाएंआभार
वाह मयंक जी
जवाब देंहटाएंक्या खूबसूरत लिखा है ...
तेल भी ना रहा और न अब घी रहा।
गम के टुकड़े निगल, अश्क को पी रहा।।
........आभार
बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं भावों को यही सच है आज का उम्दा रचना आभार
जवाब देंहटाएंवाह वाह
जवाब देंहटाएंपानी बिकने लगा दूध के भाव पर,
कौन मरहम लगायेगा अब घाव पर,
बहुत ख़ूब !
सच है, अधिकांश जीवन ऐसे ही हो गये हैं।
जवाब देंहटाएंसटीक है जी आप की यह रचना, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव!
जवाब देंहटाएंबहुत प्रेरणा मिलती है आपकी कविताओं से ...
जवाब देंहटाएंkhoobsoorati se labrez hai aapki ye kavita!
जवाब देंहटाएंबाढ़ ही खेत खाने लगी आजकल,चाँदनी तन जलाने लगी आजकल,शस्त्र से शास्त्र का है कफन सीं रहा।गम के टुकड़े निगल, अश्क को पी रहा।।
जवाब देंहटाएंसच कहा……………हालात का सही आकलन कर दिया…………………बेहद उम्दा प्रस्तुति।
आपने सही मुद्दे को लेकर बहुत बढ़िया और सठिक लिखा है! उम्दा प्रस्तुती !
जवाब देंहटाएंsach ko bakhoobi bayaan karti sundar rachna!
जवाब देंहटाएंआज के हालात का सही आंकलन करती रचना ...बहुत बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं