स्वर : अर्चना चावजी का
चौमासे में आसमान में,
घिर-घिर बादल आये रे!
श्याम-घटाएँ विरहनिया के,
मन में आग लगाए रे!!
उनके लिए सुखद चौमासा,
पास बसे जिनके प्रियतम,
कुण्ठित है उनकी अभिलाषा,
दूर बसे जिनके साजन ,
वैरिन बदली खारे जल को,
नयनों से बरसाए रे!
श्याम-घटाएँ विरहनिया के,
मन में आग लगाए रे!!
पुरवा की जब पड़ीं फुहारें,
ताप धरा का बहुत बढ़ा,
मस्त हवाओं के आने से ,
मन का पारा बहुत चढ़ा,
नील-गगन के इन्द्रधनुष भी,
मन को नहीं सुहाए रे!
श्याम-घटाएँ विरहनिया के,
मन में आग लगाए रे!!
जिनके घर पक्के-पक्के हैं,
बारिश उनका ताप हरे,
जिनके घर कच्चे-कच्चे हैं,
उनके आँगन पंक भरे,
कंगाली में आटा गीला,
हर-पल भूख सताए रे!
श्याम-घटाएँ विरहनिया के,
मन में आग लगाए रे!!
पुरवा की जब पड़ीं फुहारें,
जवाब देंहटाएंताप धरा का बहुत बढ़ा,
मस्त हवाओं के आने से ,
मन का पारा बहुत चढ़ा..
बहुत ख़ूबसूरत और मनमोहक गीत! अर्चना जी की मधुर आवाज़ में सुनकर बहुत अच्छा लगा!
शानदार गीत.
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंअच्छी पंक्तिया ........
यहाँ भी आये एवं कुछ कहे :-
समझे गायत्री मन्त्र का सही अर्थ
मधुर आवाज ने आप के गीत मै जान डाल दी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर...........
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत...धन्यवाद !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत रचा है मयंक जी ...
जवाब देंहटाएंमन में लगी आग लेखन और गायन में इतनी मधुरता से व्यक्त होगी, इसकी कल्पना भी नहीं थी।
जवाब देंहटाएंmadhur bhee madir bhee
जवाब देंहटाएंदोनो अति सुन्दर। बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबेहद मधुर और शानदार रचना. जिन्दगी के सच के साथ....
जवाब देंहटाएंजिनके घर पक्के-पक्के हैं,
जवाब देंहटाएंबारिश उनका ताप हरे,
जिनके घर कच्चे-कच्चे हैं,
उनके आँगन पंक भरे,
कंगाली में आटा गीला,
हर-पल भूख सताए रे!
श्याम-घटाएँ विरहनिया के,
मन में आग लगाए रे!!
सम-सामयिक रचना शास्त्री जी ! मुझे अपने एक जानकार से पता चला की इस बार इन मेघों ने उत्तराखंड में तवाही मचा रखी है !
मधुर आवाज़ के साथ शानदार गीत्।
जवाब देंहटाएंजिनके घर पक्के-पक्के हैं,
जवाब देंहटाएंबारिश उनका ताप हरे,
जिनके घर कच्चे-कच्चे हैं,
उनके आँगन पंक भरे,
सुन्दर शब्द रचना ।
शानदार रचना.
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत
जवाब देंहटाएंमयंक अंकल
वैसे किसी काम को शुरू करने से पहले बडों का आशीर्वाद लेना जरूरी होता है ,मेरी शिक्षासुरु हो गयी है तो आप के आशीर्वाद का इच्छुक हूँ , जैसे आपके पीछे माता सरस्वती बसती है वैसे ही मुझे भी आशीर्वाद दे की मेरे ऊपर भी माँ सरस्वती का आशीर्वाद बना रहे
बहुत ही अच्छी रचना, बधाई।
जवाब देंहटाएंआभार....चाचाजी, जो इस गीत को गाने का मौका दिया|
जवाब देंहटाएंआभार श्रोताओं का पसंद करने के लिए |
अति सुंदर, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
कविता भाषा शिल्प और भंगिमा के स्तर पर समय के प्रवाह में मनुष्य की नियति को संवेदना के समांतर, दार्शनिक धरातल पर अनुभव करती और तोलती है ।
जवाब देंहटाएंमस्त हवाओं के आने से ,
मन का पारा बहुत चढ़ा,
नील-गगन के इन्द्रधनुष भी,
मन को नहीं सुहाए रे!