कभी कुहरा, कभी सूरज, कभी आकाश में बादल घने हैं। दुःख और सुख भोगने को, जीव के तन-मन बने हैं।। आसमां पर चल रहे हैं, पाँव के नीचे धरा है, कल्पना में पल रहे हैं, सामने भोजन धरा है, पा लिया सब कुछ मगर, फिर भी बने हम अनमने हैं। दुःख और सुख भोगने को, जीव के तन-मन बने हैं।। आयेंगे तो जायेंगे भी, ज़िन्दगी में खायेंगें भी, हाट मे सब कुछ सजा है, लायेंगे तो पायेंगे भी, धार निर्मल सामने है, किन्तु हम मल में सने हैं। दुःख और सुख भोगने को, जीव के तन-मन बने हैं।। देख कर करतूत अपनी, चाँद-सूरज हँस रहे हैं, आदमी को बस्तियों में, लोभ-लालच डस रहे हैं, काल की गोदी में, बैठे ही हुए सारे चने हैं। दुःख और सुख भोगने को, जीव के तन-मन बने हैं।। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
मंगलवार, 3 जनवरी 2012
"आकाश में बादल घने हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
पा लिया सब कुछ मगर,
जवाब देंहटाएंफिर भी बने हम अनमने हैं।
सुन्दर कविता है..
kalamdaan.blogspot.com
आयेंगे तो जायेंगे भी,
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी में खायेंगें भी,
हाट मे सब कुछ सजा है,
लायेंगे तो पायेंगे भी,
धार निर्मल सामने है,
किन्तु हम मल में सने हैं।
दुःख और सुख भोगने को,
जीव के तन-मन बने हैं।।
सुन्दर !
बहुत सुंदर प्रभावी रचना,...
जवाब देंहटाएं"काव्यान्जलि":
नही सुरक्षित है अस्मत, घरके अंदर हो या बाहर
अब फ़रियाद करे किससे,अपनों को भक्षक पाकर,
आपकी सभी रचनाओं में जीवन के नए-नए अंदाज छिपे होते हैं | इतनी अच्छी पोस्ट हेतु आभार |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंजीवन की सच्चाई लिख दी आपने ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ....
नव वर्ष की शुभकामनायें शास्त्री जी ...!!
yahi sach hai , sundar shabdon men hamen thama diya hai.
जवाब देंहटाएंजी हाँ ये मानव शरीर दुःख सुख भोगने के लिए ही मिला है ...यही तो जीवन है शास्त्री जी .........बिलकुल सही बात बताई है आपने !!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंबढिया प्रस्तुतिकरण।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंक्या कहने
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...वाह!
जवाब देंहटाएंएकदम सटीक बात शास्त्री जी, आपको सपरिवार नववर्ष की शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंmeethi thand jaisee meethi rachna....is baar aap mere blog par aaye nahee guru jee :-(
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंLajawaab ...
जवाब देंहटाएंहक़ीक़त को पाने के लिए गहरी नज़र, कड़ी साधना और निष्पक्ष विवेचन की ज़रूरत पड़ती है।
http://vedquran.blogspot.com/2012/01/sufi-silsila-e-naqshbandiya.html
कहीं धूप तो कहीं छाँव..
जवाब देंहटाएंइस युग के मानव की मनोदशा का जीवंत वर्णन!
जवाब देंहटाएं--
नए साल में आपकी लेखनी में उन्नति एक नई धार दिखाई दे रही है!
नव-वर्ष की मंगल कामनाएं ||
जवाब देंहटाएंधनबाद में हाजिर हूँ --
पा लिया सब कुछ मगर,
जवाब देंहटाएंफिर भी बने हम अनमने है…………सच्चाई को उकेरती सुन्दर प्रस्तुति।
बहुत बढ़िया सर...
जवाब देंहटाएंविचारणीय रचना..
नववर्ष शुभ हो.
सादर...
यही है जीवन की सच्चाई, कहीं मिलन तो कहीं विदाई ! आभार !
जवाब देंहटाएंकभी कुहरा, कभी सूरज,
जवाब देंहटाएंकभी आकाश में बादल घने हैं।
दुःख और सुख भोगने को,
जीव के तन-मन बने हैं।।
bahut sundar abhivykti hai....
काल की गोदी में,
जवाब देंहटाएंबैठे ही हुए सारे चने हैं।
दुःख और सुख भोगने को,
जीव के तन-मन बने हैं।।
शास्वत सत्य - वाह ! !