संगी-साथी और सहेली, महल-दुमहले और हवेली, इतना सब है पास हमारे, फिर भी एकाकीपन है। ईद-दिवाली, क्रिसमस-होली, चहक रही, अभिनव रंगोली, कल-कल. छल-छल करते धारे, फिर भी एकाकीपन है। मन बेगाना, हुआ दिवाना, कितना है ये, क्रूर जमाना, पास सभी हैं अपने सारे, फिर भी एकाकीपन है। तन रूखा है, मन भूखा है, अँखियों का पानी सूखा है, रात चाँदनी, दिन उजियारे, फिर भी एकाकीपन है। |
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बुधवार, 11 जनवरी 2012
"फिर भी एकाकीपन है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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वाह..!
जवाब देंहटाएंआज के युग में सबकुछ होते हुए भी मनुष्य कितना एकाकी है..
kalamdaan.blogspot.com
तन रूखा है, मन भूखा है,
जवाब देंहटाएंअँखियों का पानी सूखा है,
रात चाँदनी, दिन उजियारे,
फिर भी एकाकीपन है।सच ..सब कुछ होते हुए भी न जाने क्यों ये एकाकीपन की अनुभूति होती है .. अच्छी प्रस्तुति
sundar abhivyakti.
जवाब देंहटाएंसंगी-साथी और सहेली,
जवाब देंहटाएंमहल-दुमहले और हवेली,
इतना सब है पास हमारे,
फिर भी एकाकीपन है।
तन रूखा है, मन भूखा है,
अँखियों का पानी सूखा है
रात चाँदनी, दिन उजियारे,
फिर भी एकाकीपन है।
बस केवल एकाकीपन......
तन रूखा है, मन भूखा है,
जवाब देंहटाएंअँखियों का पानी सूखा है,
रात चाँदनी, दिन उजियारे,
फिर भी एकाकीपन है।
....सच में सब कुछ है...पर फिर भी एकाकीपन है..बहुत सटीक और सुन्दर प्रस्तुति...
कुछ तो मन में काटता है..सुन्दर विश्लेषण
जवाब देंहटाएंयह एकाकीपन हमें हमारे बारे में सोचने को विवश करता है। और तब हम उस के रू-ब-रू होने की कामना करने लगते हैं।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति,अकेला पन ही कुछ सोचने को मजबूर करता है,...
जवाब देंहटाएंwelcome to new post --काव्यान्जलि--यह कदंम का पेड़--
बहुत खूब..
जवाब देंहटाएंपास सभी हैं अपने सारे,
फिर भी एकाकीपन है।
सच कहा एकदम...
चल अकेला चल अकेला....
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 12- 01 -20 12 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं...नयी पुरानी हलचल में आज... उठ तोड़ पीड़ा के पहाड़
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 12- 01 -20 12 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं...नयी पुरानी हलचल में आज... उठ तोड़ पीड़ा के पहाड़
दुनिया में अकेले आए हैं और अकेले ही चले जाना है.......
जवाब देंहटाएंJeevan ke ek shashwat satya se parichay karati rachana. bahut bahut badhai.
जवाब देंहटाएंअकेलापन आज के समय में अपनी सोच की ही उपज है |
जवाब देंहटाएंकविता बहुत अच्छी लगी |
आशा
saathi na sangee koi...sakhi na saheli...kin sang khelegee to laado akelee.....
जवाब देंहटाएंकमाल की अभिव्यक्ति!! ला-जवाब
जवाब देंहटाएंतन रूखा है, मन भूखा है,
अँखियों का पानी सूखा है,
रात चाँदनी, दिन उजियारे,
फिर भी एकाकीपन है।
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा मंच-756:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
तन रूखा है, मन भूखा है,
जवाब देंहटाएंअँखियों का पानी सूखा है
रात चाँदनी, दिन उजियारे,
फिर भी एकाकीपन है।
गहन भाव संयोजन ...
sundar, saral, laajabaab prastuti.
जवाब देंहटाएंआधुनिक सुविधाओं के होते हुवे भी मन अकेला हो जाता है ... अकेलेपन को उजागर करती रचना ...
जवाब देंहटाएंइस एकाकीपन से जीतना बड़ा कठिन है
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
यह एकाकीपन इसलिए भी हैकि आदमी ने मकान बनाया, दुकान बनाया. खेत और खलिहान बहाया. लेकिन स्वयं को इन्सान नहीं बनाया, आज मानव हैरान है, इस प्रगतिशीलता में ही परेशान है, क्योकि वह बाकी सब कुछ है, बस! एक इंसान नहीं है. इंसानियत को कुचलने वाला, मानवता को छोड़ने वाला की आखिर यही गति होती है. धन से भीड़ तो एकत्रित की जा सकती है , मित्र नहीं बनाया जा सकता. कोठियां तो बनवायी जा सकती है परंरू 'घर एक मंदिर' नहीं. सोने चाँदी के पलंग बनवाये जा सकते हैं पान्तु नींद नहीं खरीदी जा सकती. सुख-शान्ति नहीं लाया जा सकता. आदमी की आदमी अंततः बना पड़ेगा. इंसानियत और मानवता का पालन करना पड़ेगा. सचेत करती और सव परिष्कार का आह्वान करती एक सार्थक पोस्ट.आभार.
जवाब देंहटाएंयह एकाकीपन इसलिए भी हैकि आदमी ने मकान बनाया, दुकान बनाया. खेत और खलिहान बहाया. लेकिन स्वयं को इन्सान नहीं बनाया, आज मानव हैरान है, इस प्रगतिशीलता में ही परेशान है, क्योकि वह बाकी सब कुछ है, बस! एक इंसान नहीं है. इंसानियत को कुचलने वाला, मानवता को छोड़ने वाला की आखिर यही गति होती है. धन से भीड़ तो एकत्रित की जा सकती है , मित्र नहीं बनाया जा सकता. कोठियां तो बनवायी जा सकती है परंरू 'घर एक मंदिर' नहीं. सोने चाँदी के पलंग बनवाये जा सकते हैं पान्तु नींद नहीं खरीदी जा सकती. सुख-शान्ति नहीं लाया जा सकता. आदमी की आदमी अंततः बना पड़ेगा. इंसानियत और मानवता का पालन करना पड़ेगा. सचेत करती और सव परिष्कार का आह्वान करती एक सार्थक पोस्ट.आभार.
जवाब देंहटाएंसंगी-साथी और सहेली,
जवाब देंहटाएंमहल-दुमहले और हवेली,
इतना सब है पास हमारे,
फिर भी एकाकीपन है।
मन हर कौना सूना है ......बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...सब कुछ रीता रीता सा है ......
ये आंसू मेरे दिल की जुबां हैं .......मैं रो दूं तो रोदें आंसू ,मैं हंस दूं तो हंस दें आंसू ....
जवाब देंहटाएंमन बेगाना, हुआ दिवाना,
जवाब देंहटाएंकितना है ये, क्रूर जमाना,
पास सभी हैं अपने सारे,
फिर भी एकाकीपन है।
बेहतरीन अभिव्यक्ती ..
तन रूखा है, मन भूखा है,
जवाब देंहटाएंअँखियों का पानी सूखा है,
रात चाँदनी, दिन उजियारे,
फिर भी एकाकीपन है।
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति ..
सादर अभिनन्दन !!
तन रूखा है, मन भूखा है,
जवाब देंहटाएंअँखियों का पानी सूखा है
रात चाँदनी, दिन उजियारे,
फिर भी एकाकीपन है।
vaah..bahut khoobsurat prastuti.aapko lohdi ki dheron shubhkamnayen.