खादी-खाकी दोनों में ही, बसते हैं शैतान। अचरज में है हिन्दुस्तान! अचरज में है हिन्दुस्तान!! तन भूखा है, मन रूखा है खादी वर्दी वालों का, सुर तीखा है, उर सूखा है खाकी वर्दी वालों का, डर से इनके सहमा-सहमा सा मजदूर-किसान! अचरज में है हिन्दुस्तान! अचरज में है हिन्दुस्तान!! खुले साँड संसद में चरते, करते हैं मक्कारी, बेकसूर थानों में मरते, जनता है दुखियारी, कितना शानदार नारा है, भारत बहुत महान! अचरज में है हिन्दुस्तान! अचरज में है हिन्दुस्तान!! माली लूट रहे हैं बगिया को बन करके सरकारी, आलू,दाल-भात महँगा है, महँगी हैं तरकारी, जीने से मरना महँगा है, आफत में इन्सान! अचरज में है हिन्दुस्तान! अचरज में है हिन्दुस्तान!! मानवता-मर्यादा घुटती है खादी के बानों मे, अबलाओं की लज्जा लुटती है सरकारी थानों में, खादी-खाकी की केंचुलियाँ, सचमुच हैं वरदान! अचरज में है हिन्दुस्तान! अचरज में है हिन्दुस्तान!! |
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मंगलवार, 10 जनवरी 2012
"सहमा सा मजदूर-किसान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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सही में ही ये केंचुल की तरह प्रयोग हो रहे हैं
जवाब देंहटाएंवाह वाह शास्त्री जी...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया व्यंग...मज़ा आया पढ़ कर...और सच्चाई पर दुःख भी हुआ.
वाह ! बहुत खूब ..
जवाब देंहटाएंमेरी ओर से ..
मात पिता कठपुतली हो गए ,बिका परिवारों का ईमान
बड़े लाड से पाला जिनको पाल रहे उन्ही की संतान
आँखों का पानी ढल गया , शर्मसार हर इंसान
अचरज में है हिन्दुस्तान ...
अचरज में है हिन्दुस्तान ...
kalamdaan.blogspot.com
आज तो बहुत ही कडवा सच लिख दिया है।
जवाब देंहटाएंतर्कसंगत समकालीन परिस्थितियों का चित्रण।
जवाब देंहटाएंअब हम पर किसी चीज का असर नहीं होता.
जवाब देंहटाएंखरी खरी कही है ..अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमानवता-मर्यादा घुटती है खादी के बानों मे,
जवाब देंहटाएंअबलाओं की लज्जा लुटती है सरकारी थानों में,
खादी-खाकी की केंचुलियाँ, सचमुच हैं वरदान!
अचरज में है हिन्दुस्तान!
अचरज में है हिन्दुस्तान!!
आज तो बहुते करारी खरी खरी बात कहिन,शास्त्री जी.
पढ़ के मजा आय गवा,आप के ई रचना बहुते अच्छा लाग हमका,बहुते बहुत बधाई,..शास्त्री जी आपका,...welcom to new post --"काव्यान्जलि"--
चोर लुटेरे भी हैं अपने भाग्य विधाता..
जवाब देंहटाएंपीड़ित चौराहे पे पिट के न्याय है पाता..
हम तुम आँख चुराते देखे, बनते हैं अनजान..
अचरज में है हिन्दुस्तान!
अचरज में है हिन्दुस्तान!!......(Manoj)
बहुत बढ़िया व्यग्य लिखा आपने शास्त्री जी । आभार ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन व्यंग्य।
जवाब देंहटाएंsajeev vyang
जवाब देंहटाएंतन भूखा है, मन रूखा है खादी वर्दी वालों का,
जवाब देंहटाएंसुर तीखा है, उर सूखा है खाकी वर्दी वालों का,
डर से इनके सहमा-सहमा सा मजदूर-किसान!
kamaaaal ka likha hai shar akshar satya.ati sundar.
खुले साँड संसद में चरते, करते हैं मक्कारी,
जवाब देंहटाएंबेकसूर थानों में मरते, जनता है दुखियारी,
कितना शानदार नारा है, भारत बहुत महान!
अचरज में है हिन्दुस्तान!
अचरज में है हिन्दुस्तान!!
Mere man kee baat kah di aapne shashtriji :)
सच को उजागर करती सार्थक प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंshandar vyanga hae
जवाब देंहटाएंएक आम अनुभूति को स्वर मिले.
जवाब देंहटाएं