खिचड़ी देती है मज़ा, कंकड़ देते कष्ट। रसना के आनन्द को, कर देते है नष्ट।। लेकर छलनी छानिए, कंकड़ और कबाड़। मलयानिल के वास्ते, खोलो बन्द किवाड़।। त्यौहारों में बाँटिए, खुशी और आनन्द। सम्बन्धों में कीजिए, बैर-भाव को बन्द।। मत पाने के लिए जो, बाँट रहे हैं नोट। जब गद्दी मिल जाएगी, लेंगे नोच-खसोट।। सुमन गोद में पालते, सदा नुकीले शूल। मित्रों के अनुकूल हैं, शत्रु के प्रतिकूल।। |
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रविवार, 15 जनवरी 2012
"1200वीं पोस्ट-कंकड़ और कबाड़" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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vaah laajabaab dohe.1200vi post ke liye badhaai.
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी 1200 वी पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई ....यूँ ही सिलसिला चलता रहें यही कामना है ...
जवाब देंहटाएंएक प्रेरणादायक प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंइस १२०० वी पोस्ट पर बहुत शुभकामनाएँ !
आभार !
1200 वीं पोस्ट की अतिशय बधाईयाँ..
जवाब देंहटाएंसुमन गोद में पालते, सदा नुकीले शूल।
जवाब देंहटाएंमित्रों के अनुकूल हैं, शत्रु के प्रतिकूल।।
1200 वीं पोस्ट पर हार्दिक शुभकामनाये.
1200 वी पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई ..शास्त्री जी..ये सिलसिला यूँ ही चलती रहे..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुभकामनाएं..
जवाब देंहटाएंमुझे नहीं लगता कि आपका रिकार्ड कोई तोड़ पाएगा। ब्लाग के सचिन को मै सैल्यूट करता हूं।
बहुत बहुत शुभकामनाएं
मत पाने के लिए जो, बाँट रहे हैं नोट।
जवाब देंहटाएंजब गद्दी मिल जाएगी, लेंगे नोच-खसोट।।
bahut khoob babu ji....
bahut bahut shubhkamnayen...aabhar
बधाई, शुभकामनाएं. जोर-ए-कलम और जियादा हो . और बढ़िया रचनाएं हमें पढ़ने को मिलती रहें.
जवाब देंहटाएं1200 वीं पोस्ट पर हार्दिक शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंइन लघु-लघु छंदों में आप व्यवहार के सार-तत्व समेट देते हैं -साधु !
1200 वीं पोस्ट पर हार्दिक शुभकामनायें.ये सिलसिला यूँ ही चलता रहे।
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 16-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
कंकड़ और कबाड़ को अलग कर के ही खिचड़ी का मज़ा लिया जा सकता है...खिचड़ी की शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना अच्छी लगी.....
जवाब देंहटाएं१२०० वी पोस्ट के लिए बहुत२ शुभकामनाए
शास्त्री जी,एक निवेदन है,कि आप् मेरे समर्थक बने,मै तो बहुत पहले से ही आपका समर्थक बन गया हूँ मुझे आत्मीय खुशी होगी,....आभार
new post--काव्यान्जलि --हमदर्द-
बेसुरा सुर साज से आने लगा,
जवाब देंहटाएंपेड़ अपने फल स्वयं खाने लगा,
भाई से तकरार भाई ठानता है।
मन सुमन की गन्ध को पहचानता है।।
सुन्दर रचना .
बहुत बधाई और शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना है ....!!
1200 वीं पोस्ट की बधाई स्वीकार करें.
जवाब देंहटाएंसुंदर और सटीक दोहों में जीवन के दर्शन हो गये.
सभी दोहे बढ़िया लगे .. १२०० वीं पोस्ट की बधाई
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायक प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंmubarak...humein to 100 pahunchne mein hee abhi waqt lag jaayegaa!
जवाब देंहटाएंबधाईयाँ!!!
जवाब देंहटाएंबढिया रचना।
जवाब देंहटाएंबधाईयां.....
सारे ही दोहे उत्तम हैं। बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई..
जवाब देंहटाएं१२००वी पोस्ट के लिए के लिए बहुत बहुत बधाई |
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